बिहार डेस्कः कृषि और किसानों की दुर्दशा बड़ी विडम्बना है। देश में खेती की हालत और किसानों के हालात दोनों बदत्तर हैं। या तो योजनाएं इस हद तक लाभकारी नहीं होती कि स्थिति को सुधारा जा सके या फिर योजनाओं का लाभ किसानों तक पहुंचते-पहुंचते दम तोड़ देता है। नतीजा हालात जस के तस बने रहते हैं। किसानों को लेकर सरकार के वायदों और उसकी हकीकत का फासला कितना बड़ा है यह बताने की जरूरत नहीं। दुर्दशा और विडम्बना के इसी दौर एक राज्य की सरकार ऐसी भी है जिसकी नीतियों और योजनायों में स्पष्ट संकेत है कि कम से कम बिहार में किसानों के दिन बहुरेंगे और अगर दूसरी राज्यों ने इसका अनुकरण किया तो देश में भी किसानों की स्थिति में सुधार होगा। अन्न्दाता कहलाने वाले किसान के घर में चुल्हा नहीं जलता बल्कि पेट की आग सुलगती है और सरकारी योजनाएं इस आग को बुझा पाने में अब तक नाकाम हीं रही है। विडम्बना के इसी दौर में बिहार सरकार ने शानदार पहल की है जिससे बदहाल जिंदगानी को अभिशप्त किसानों की तकदीर संवरेगी।जैविक खेती से उत्पादन और उत्पादकता दोनों बढ़ती है। रासायनिक खेती के मुकाबले जैविक खेती कम खर्चीली, टिकाऊ और स्वस्थ है इसलिए जैविक खेती राज्य सरकार की प्राथमिकता है।गंगा नदी को रासायनिक अवशिष्ट से बचाने के लिए भी जैविक खेती अति आवश्यक है ताकि गंगा की अविरलता और निर्मलता को कायम रखा जा सके। इन महत्वपूर्ण पहलुओं को देखते हुए देश में पहली बार बिहार के चार जिलों में प्रयोग के तौर पर जैविक सब्जी उत्पादन हेतु कृषि इनपुट अग्रिम अनुदान योजना प्रारंभ किया गया जो एक ऐतिहासिक और क्रांतिकारी कदम है। अग्रिम इनपुट अनुदान योजना का यह प्रयोग सफल होने पर इसे सभी फसलों के लिए पूरे प्रदेश में राज्य सरकार लागू करेगी। भविष्य में इसका लाभ सभी किसानों, बटाईदारों एवं खेतिहर मजदूरों को भी मिलेगा, इसके साथ ही जरूरत पड़ने पर अनुदान की राशि भी बढ़ाई जायेगीद्य अगले सीजन में आलू की जैविक खेती के लिए भी राज्य सरकार अग्रिम अनुदान देगी। पायलट प्रोजेक्ट के तहत भारत में पहली बार अग्रिम अनुदान योजना के लिए बिहार के चार जिले समस्तीपुर, नालंदा, पटना और वैशाली का चयन किया गया। इन जिलों के 20 हजार 173 किसानों को अधिकतम 30 डिसमिल भूमि के लिए ई-कैश के माध्यम से सीधे उनके खाते में 6000 रुपया राज्य सरकार द्वारा मुहैया कराई गयी, ताकि गड़बड़ी की गुंजाइश नहीं रहे। लाभान्वित किसानों को निर्धारित समय सीमा के अंदर अग्रिम अनुदान की इस राशि से चिन्हित किये गये विक्रेता/डीलर से जैविक खाद, बीज और जैविक कीटनाशी की खरीददारी करनी है। खरीददारी के लिए किसानों को नकद राशि की जगह अपना आधार संख्या और मोबाइल पर आए ओ0टी0पी0 विक्रेता/डीलर को बताना पड़ता है। खर्च नहीं होने की स्थिति में किसानों के खाते से अनुदान की यह राशि स्वतः विभाग के पास लौट जाती है। वर्तमान समय में बिहार सब्जी उत्पादन के मामले में तीसरे स्थान पर हैंद्य राज्य सरकार ने कृषि रोड मैप एवं अन्य कार्य-योजनाओं के जरिये प्रदेश को सब्जी उत्पादन में प्रथम स्थान पर ला खड़ा करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। लक्ष्य को हासिल करने के लिए जैविक तरीके से सब्जी का उत्पादन बढ़ाने के साथ ही सब्जियों के प्रसंस्करण एवं उसके मार्केटिंग की व्यवस्था भी की गयी, ताकि सब्जी उत्पादकों को उचित लाभ मिल सके। इसके लिए बिहार में सहकारी समितियों का गठन किया गया। जिला स्तर पर प्रसंस्करण और राज्य स्तर पर फेडरेशन बनाकर मार्केटिंग की व्यवस्था सुनिश्चित की गयी। राज्य सरकार ने सिक्किम के साथ समझौता (एम0ओ0यू0) कर जैविक खेती में सर्टिफिकेशन (प्रमाणीकरण) की होनेवाली समस्या को पहले ही दूर कर दिया. इस समझौते से जैविक तरीके से उत्पन्न होनेवाली सब्जी को बाजार मुहैया होने में काफी सहूलियत मिल रही है।पहली बार कृषि रोड मैप की कार्ययोजना में गंगा की अविरलता एवं निर्मलता के अभियान को शामिल किया गया । तीसरे कृषि रोड मैप (2017-22) में गंगा नदी को विशेष महत्व दिया गया। इस कड़ी में पटना से भागलपुर तक गंगा नदी एवं राजकीय, राष्ट्रीय सड़कों के किनारे जैविक कृषि कॉरिडोर का विकास करने की रणनीति तैयार की गयी, जिसपर काम तेजी से आगे बढ़ा है । जैविक खेती के लिए पर्याप्त मात्रा में जैविक खाद की आपूर्ति हो इसके लिए वर्मी कंपोस्ट यूनिट लगाने के लिए सरकार किसानों के साथ-साथ निजी उद्यमियों को अनुदान देने की व्यवस्था की। किसानों को पक्का वर्मी कंपोस्ट यूनिट लगाने के लिए बिहार सरकार ने 50 फीसदी जबकि निजी उद्यमियों को 40 फीसदी अनुदान देने की व्यवस्था बनायी। गोबर गैस प्लांट पर भी अनुदान दिया गया। नतीजतन कम कीमत पर एवं आसानी से पर्याप्त मात्रा में वर्मी कंपोस्ट किसानों को उपलब्ध हो सका। इससे रासायनिक खादों पर निर्भरता कम हुई। राज्य सरकार द्वारा कृषि का विकास, किसानों की आमदनी बढ़ाने और देश के हर थाली में बिहार का एक व्यंजन पहुँचाने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए विगत 12 वर्षों में कृषि बजट में 113 गुणा की वृद्धि की गयी। बिहार में 2005-06 में कृषि का बजट जहाँ मात्र 20 करोड़ रुपया था वह अब वर्ष 2018-19 में बढ़कर 2266 करोड़ रुपया हो गया। धान, गेहूं और मक्का उत्पादन के लिए बिहार को कृषि कर्मण पुरस्कार मिल चुका है। राज्य के किसानों को 71 प्रकार के कृषि यंत्रों की खरीद पर अनुदान का लाभ दिया जा रहा है, और इसमें ऐसी व्यवस्था की गयी है कि कोई भी किसान साल में कभी भी यंत्र खरीदेगा उसे अनुदान का लाभ मिलेगा। देश के विभिन्न हिस्सों में अबतक हरित क्रांति, श्वेत क्रांति, नीली क्रान्ति देखी गयी है लेकिन बिहार इन्द्रधनुषी क्रांति यानी सप्तक्रांति लाने की ओर अग्रसर