
बिहार डेस्कः बिहार की राजधानी पटना आवारा कुत्तों के आतंक से आतंकित है। लोगों का जीना मुहाल है क्योंकि आवारा कुत्तों की आबादी और आतंक दोनो बढ़ रहा है। राजधानी पटना की सड़कों पर आवारा कुत्तों की बढ़ती आबादी आम जनजीवन के लिए एक बड़ा खतरा है। शहर के आवारा कुत्ते एक घातक हमलावर की भूमिका निभा रहे हैं। रात को काम से अपने घर लौटने वाले लोगों के दिलों में इन आवारा कुत्तों का खौफ है वजह है कि ये नुकसान पहुंचाते हैं और कई बार लोगों पर हमले कर चुके हैं। पीड़ित लोगों के लिए ये कुत्ते दोहरी मुसीबत हैं क्योंकि इनके हमले से घायल कई पीड़ितों को सरकारी अस्पताल में एंटी रेबिज इंजेक्शन तक नहीं मिलती क्योंकि वहां वह या इंजेक्शन आमतौर पर उपलब्ध नहीं होता। कई बार सामाजिक संगठनों ने आवाज उठाई कई सकारात्मक पहल किये लेकिन संबंधित संस्थानों की उदासीनता से कोई व्यापक हल नहीं निकाला जा सकता है।बिहार का हीं एक दूसरा शहर बोधगया सबसे बड़ा उदाहरण है जहां इस समस्या से निपटने के लिए साल 2017 में एक कारगर पहल की गयी। बोधगया में आवारा कुत्तों की जनसंख्या नियंत्रण को लेकर कुत्तों का नसबंदी शिविर लगाया गया। दरअसल अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध पर्यटन स्थली बोधगया में आवारा कुत्तों की वजह से बौद्ध पर्यटकों को काफी परेशानी हो रही थी। जब स्थानीय प्रशासन ने इस समस्या को लेकर कोई पहल नहीं की तब सिक्किम सरकार ने कुत्तों की आबादी पर नियंत्रण के लिए उनकी नसबंदी की यह पहल शुरू की। सिक्किम सरकार के एंटी रेबीज एमल हेल्थ डिवीजन ने लगभग 500 कुत्तों की नसबंदी का लक्ष्य रखा था। सवाल है कि क्या इस समस्या की गंभीरता को देखते हुए बिहार की राजधानी पटना में ऐसी पहल राज्य सरकार या स्थानीय प्रशासन के स्तर से नहीं हो सकता? यह पहल जरूरी है क्योंकि कुत्तों ने घातक हमलावरों की भूमिका अख्तियार कर ली है और लगातार आमलोगों के लिए परेशानी का सबब बन रहे हैं।
