बिहार ब्रेकिंगः एक शायर ने कभी लिखा था कि ‘‘दीए बुझाती है, शोलों को भड़काती है, आंधी को भी दुनियादारी आती है’’ दरअसल दीए की बेबसी पर आंधी के कहर को जब शायर लिखा होगा तो जाहिर है उसे अंदाजा नहीं रहा होगा कि कभी इंसानी तकदीर में चूहे और और मच्छर भी मौत लिख सकेंगे। तस्वीर न होती, सबूत न होते तो शायद हम और आप इसे मजाक हीं समझते कि चूहों और मच्छरों ने इंसान की जान ली है। समझ नहीं आता यह उनकी ताकत है या हमारी व्यवस्था की कमजोरी कि चूहे और मच्छर भी इंसानी जान के दुश्मन बने बैठे हैं। सियासत सीटों की शेयरिंग में उलझी है और चूहे मच्छर इंसानी तकदीर में मौत लिख रहे। ढूंढिए तो लाख ढूंढने पर भी पता नहीं चलता कि इस तस्वीर में व्यवस्था कहां है? हमारा आपका सरोकार कहां है? सुबह का अखबार देखिए तो लगता है मानों आप व्यवस्था पर आधारित कोई मजाकिया तहरीर पढ़ रहे हों। सियासत की उलझनों में हमारी आपकी जिंदगी कितनी उलझी पड़ी है इसकी वानगी महज इन दो खबरों से मिल जाएगी। पहली खबर है दरभंगा मेडिकल काॅलेज की है जहां एक चूहे के काटने से नवजात की मौत हो गयी। अब बताईए ये उस व्यवस्था का मजाक है कि नहीं जहां आप आरोग्य की उम्मीद करते हैं वहां के चूहे जिंदगी छिन रहे हैं। बच्ची आईसीयू मे थी जहां चूहे के कुतरने से उस बच्ची की मौत हो गयी। समझना मुश्किल है बच्ची आईसीयू में थी या फिर हमारा सिस्टम आईसीयू में है जो दम तोड़ने को है।
मन नहीं करता कि यकीन करें इस सच्चाई पर कि सरकार की सौगात एक अस्पताल के आईसीयू में चूहों की एंट्री पर बैन नहीं है। दूसरी खबर पटना से है जहां एक सरकारी अधिकारी ने एक अस्पताल में दम तोड़ दिया। उन्हें डेंगू मच्छर ने काटा था। यकीन नहीं होता कि सुपर स्पैसलिटी वाले अस्पतालों की भीड़ में मच्छरों और चूहों को यह ताकत कहां से आ गयी कि वे इसंानी जान ले लें। डेंगू से पटना के अस्पताल में दम तोड़ने वाले सहरसा के एसडीएम सृष्टि राज सिन्हा अपना चार्ज तक नहीं ले सके। सवाल यही है कि आखिर हमें यह मान लेना चाहिए कि व्यवस्था ऐसे हीं चलेगी, ऐसे हीं चलती रहेगी। दोष किसको दें सरकार को दें, उस तंत्र कों दें जिसके साए तले ऐसी तस्वीरें आम है या फिर अपने आप को दें कि हम खुद को यह समझा हीं नहीं पा रहे कि कुछ भी नया नहीं है, कुछ भी गलत नहीं है।
मौत हीं तो हुई है मरते तो सब हैं। शायद इस वजह से नहीं समझा पा रहे हैं कि लोकतंत्र प्रजातंत्र वाले देश के तंत्र के साए तले मच्छर और चूहे हमारी जान ले रहे हैं। चुनावी मौसम सियासत को सीटों की शेयरिंग में उलझते देखा है, सत्ता की व्यस्तता भी देखी है, सरकार को और ‘सरकार’ सबको देखा है नहीं दिखता तो सिर्फ मौत की ऐसी तस्वीरों में हमारा आपको सरोकार? कोशिश करते रहिए ढूंढते रहिए सरकार से मिलना मुश्किल है कहीं आपके और हमारे ‘सरकार’ मिल जाएं तो उनसे पूछिए कि किसे जिम्मेवार माने इन मौतों का? पूछिएगा उस ‘सरकार’ से जो चुनावी मौसम में आपकी ड्योढ़ी पर आते हैं और वायदों की नयी डोज पिला जाते हैं। अगर तकदीर में गिडगिड़ाना लिखाना है, सुविधाओं के लिए ठोकरें खाना लिखा है तो पूछिए ‘अपने ‘सरकार’ से कि किसके सामने गिड़गिड़ाएं उनके सामने जिन्हें हम ‘सरकार’ बनाते हैं या फिर उनके साम