-अनुभव
आज लोकनायक की 117 वीं जयंती है। लोकनायक, उन्हें यूं ही नहीं कहा जाता। उनकी सेवा भाव, त्याग और तपस्या से प्रभावित होकर उन्हें लोकनायक कहा गया। उन्होंने देश में शोषण और गैर बराबरी के खात्मे के लिए सदा प्रयास किया। यह कितना दुखद है कि आज उनका एक शिष्य निजी स्वार्थ की वजह से जेल में है, तो दूसरा गद्दी पर बैठ कर चैन की बंसी बजा रहा है। प्रदेश में अव्यवस्था चरम पर है, हर ओर भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार है। महिलाओं के साथ उत्पीड़न की घटना आम हो चुकी है, प्रदेश के किसान, छात्र एवं आम आदमी सब के सब परेशान हैं।
1974 में जब देश की स्थिति खराब हो गई थी, लोगों को रोजगार मिलना बंद हो गया था, आवश्यक वस्तुएं नहीं मिल पा रही थी, भ्रष्टाचार काफी बढ़ गया था, तब जेपी ने छात्रों के साथ आंदोलन की शुरुआत की थी।देखते ही देखते फिर आम लोग भी इससे जुड़ते चले गए। उन्होंने तब “संपूर्ण क्रांति” का नारा दिया और आंदोलन चलाए। उन्होंने कहा था
"भ्रष्टाचार मिटाना, बेरोजगारी दूर करना, शिक्षा में क्रांति लाना, आदि ऐसी चीजें हैं जो आज की व्यवस्था से पूरी नहीं हो सकती, क्योंकि यह इस व्यवस्था की ही उपज है। यह तभी पूरी हो सकती है, जब संपूर्ण व्यवस्था ही बदल दी जाए और संपूर्ण व्यवस्था परिवर्तन के लिए क्रांति"संपूर्ण क्रांति " आवश्यक है। लोकनायक के संपूर्ण क्रांति में राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, बौद्धिक, शैक्षणिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक क्रांति कुल सात क्रांतियां शामिल रही। बिहार से उठी संपूर्ण क्रांति की चिंगारी देश के कोने-कोने में भड़क गई थी। पूरे देश से नौजवानों का जत्था सड़कों पर निकल पड़ा था। सत्ता का विरोध इतना जबरदस्त था कि 25 जून 1975 को तात्कालिक प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा कर दी। जेपी सहित लाखों लोगों को जेल में डाल दिया गया। दो वर्ष के बाद 18 जनवरी 1977 को चुनाव की घोषणा के साथ इमरजेंसी हटी। इमरजेंसी के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस का विरोध इतना अधिक था कि कांग्रेस को सत्ता से हाथ धोना पड़ा और तब केंद्र में मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता दल की सरकार बनी। तब लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार, शरद यादव, रामविलास पासवान ,सुशील कुमार मोदी एवं वर्तमान समय के कई राजनेता जे पी के छात्र युवा संघर्ष वाहिनी के हिस्सा हुआ करते थे। कहने के तो कई नेता जेपी के शिष्य कहे जाते हैं, परंतु कोई भी उनके रास्तों पर चलने को तैयार नहीं है। जेपी ने हमेशा जनता की भलाई और देश की भलाई को सर्वोपरि माना। परंतु आज उनके तमाम शिष्य उनके नाम पर वोट तो ले लेते हैं, लेकिन कोई भी उनके रास्ते पर चल कर जनता की भलाई और राष्ट्रहित में काम नहीं कर रहा। लोकनायक जयप्रकाश नारायण का जन्म 11 अक्टूबर 1902 को बिहार के सारण में हुआ। विद्यार्थी जीवन से ही वो स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए। तब वह डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद और सुप्रसिद्ध गांधीवादी डॉ अनुग्रह नारायण सिन्हा के द्वारा स्थापित बिहार विद्यापीठ में शामिल हुए। जिसका गठन युवाओं को प्रेरित करने के लिए किया गया था। 1922 में अच्छी शिक्षा के लिए वह अमेरिका चले गए, जहां 1929 तक उन्होंने समाजशास्त्र का अध्ययन किया। विद्यार्थी जीवन में ही अपने खर्चों को पूरा करने के लिए वह कई प्रकार के काम भी किया करते थे। उनका विवाह भी अक्टूबर के महीने में ही सन 1920 ईस्वी में हुआ।1929 में जब वह अमेरिका से लौटे तो हिंदुस्तान में स्वतंत्रता संग्राम चरम पर था। उसी दौरान उनका संपर्क जवाहरलाल नेहरू से हुआ और उन्होंने देश के स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में खुद को झोंक दिया। सन 1932 में गांधी, नेहरू सहित तमाम महत्वपूर्ण नेताओं के जेल चले जाने के बाद देश के विभिन्न हिस्सों में उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया। वह जेल भी गए और सन 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध लोक आंदोलन का नेतृत्व किया। उन्होंने नेपाल जाकर आजाद दस्ते का भी गठन किया और उसे प्रशिक्षित किया। आजादी के बाद 1948 में उन्होंने कांग्रेस के समाजवादी दल का नेतृत्व किया और बाद में गांधीवादी दल के सहयोग से समाजवादी सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना की। 19 अप्रैल 1954 में उन्होंने विनोबा भावे के सर्वोदय आंदोलन के लिए अपना जीवन समर्पित करने की घोषणा की, और 1957 में उन्होंने राजनीति छोड़ने का निर्णय लिया। परंतु देश की स्थिति बिगड़ती देख 1960 के दशक के अंत में वो पुनः राजनीति में लौट आए। 1974 में किसानों के आंदोलन में उन्होंने बिहार सरकार के इस्तीफे की मांग की। उन्होंने बिहार में सरकारी भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन भी किया। वे इंदिरा गांधी की प्रशासनिक नीतियों के विरुद्ध थे ।1975 में इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा की। लोकनायक जयप्रकाश नारायण को सन 1965 में समाज सेवा के लिए मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया और मरणोपरांत उन्हें 1999 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया। उनकी मृत्यु 76 वर्ष की अवस्था में 8 अक्टूबर सन 1979 को हुई। जेपी ने देश के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। लेकिन जेपी के शिष्य आज किस रास्ते पर चल रहे हैं यह जनता देख रही है।उनके नाम पर राजनीति की दुकान चलाने वाले राजनेताओं को उनका सबक याद रखना चाहिए।सिर्फ उनकी मूर्ति पर पुष्प अर्पित करने से कुछ नहीं होता, आवश्यकता है उनके पद चिन्हों पर चलने की, उनके बताए रास्तों पर बढ़ने की।लोकनायक के लिए यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी।