बिहार डेस्क-अनूप नारायण सिंह
24 घंटे के निर्जला-निराहार व्रत का पारण तीन की प्रातः काल, सोमवार को नहाय-खाय के लेंगी महाव्रत का संकल्प
आश्विन कृष्ण पक्ष अष्टमी मंगलवार दो अक्टूबर को आर्द्रा नक्षत्र तथा वरीयान योग में महिलाएं संतान की दीर्घायु एवं वंश वृद्धि के लिए जीमूतवाहन (जीउतिया या जितिया) की पूजा करके चौबीस घंटे का निर्जला उपवास रखेंगीI इस दिन माता लक्ष्मी और मां दुर्गा का पूजा करने का भी विधान हैI इस पावन दिवस में कुश से जीमूतवाहन की मूर्ति बनाकर पूजा करने के बाद माताएं ब्राह्मण या योग्य पंडित से जीमूतवाहन की कथा सुनकर उनको दक्षिणा भी देंगीI कर्मकांड विशेषज्ञ पंडित राकेश झा शास्त्री ने बताया कि मातायें अपने पुत्रों की मंगल कामना एवं दीर्घायुष्य के लिए जीवत्पुत्रिका (जीउतिया) का व्रत मंगलवार को आर्द्रा नक्षत्र तथा वरीयान योग में करेंगीI इस उपवास से एक दिन पहले एक अक्टूबर सोमवार को व्रती महिलाएं नहाय-खाय के साथ इस पुनीत व्रत का संकल्प लेंगीI हिन्दू धर्म में इस महाव्रत की खासी महत्ता बताई गई हैI नहाय-खाय के दिन माताएं पवित्र नदियों या जलाशय में स्नान करके पूजा आदि के बाद मड़ुआ रोटी, नोनी का साग, कंदा, झिमनी, करमी आदि ग्रहण करेंगीI अगले दिन अष्टमी तिथि को उपवास करके नवमी में पारण करेंगीI इस महाव्रत का पारण व्रती महिलाएं केराव से करेंगीI तीन अक्टूबर बुधवार को पारण प्रातः 6:08 बजे के बाद होगाI पंडित झा के कहा कि इस व्रत के पारण से पूर्व अन्न का दान करने से विपन्नता का नाश होता हैI साथ ही धन-धान्य की वृद्धि भी होती हैI
सरगही- ओठगन सोमवार की रात्रि 2:41 बजे से पहले
ज्योतिषी पंडित राकेश झा ने कहा कि आश्विन कृष्ण सप्तमी सोमवार एक अक्टूबर के रात में 2:41 बजे तक ही सप्तमी तिथि हैI व्रत करने वाली महिलाएं इसके पूर्व ही चाय, शरबत, मिष्ठान्न, ठेकुआ, पिरकिया आदि ग्रहण करके पुनीत व्रत का महा संकल्प लेंगीI
मड़ुआ रोटी, नोनी साग के सेवन की महत्ता
पंडित राकेश झा के अनुसार महिलाएं संतान के लिए मड़ुआ रोटी, नोनी साग के सेवन करती हैI मड़ुआ एवं नोनी साग उसर भूमि में भी उपजता हैI इसी प्रकार उनकी संतान की सभी परस्तिथियों में रक्षा होगीI जिस प्रकार नोनी का साग दिनों-दिन विकास करता है, उसी प्रकार उनके वंश में भी वृद्धि होता है I इसीलिए जीउतिया के नहाय-खाय के दिन इसके सेवन का विधान हैI
भोलेनाथ ने सुनायी थी माता पार्वती को कथा
पंडित राकेश झा शास्त्री ने कहा कि जीमूतवाहन कि कथा सबसे पहले भोलेनाथ ने माता पार्वती को सुनायी थीI इस कथा में एक चूल्होरिन और सियारिन के द्वारा इस व्रत को करने का वर्णन हैI इन दोनों ने जीमूतवाहन का व्रत रखा पर सियारिन को भूख बर्दाश्त नहीं हुई और उसने मांस का भोजन कर लियाI अगले जन्म में दोनों एक ब्राह्मण की पुत्री के रूप में जन्म लियाI चूल्होरिन (अब शीलावती) की शादी उस नगर के राजा के यहां कार्यरत मंत्री से हुई और सियारिन (अब कर्पूरावती) की शादी नगर के राजा मलयकेतु के साथ विधि-विधान से हुईI दोनों बहनो को सात-सात पुत्र हुए लेकिन सियारिन के सातों पुत्रो की मृत्यु हो गई और चूल्हारिन के जीवित रहेI बाद में इसका कारण जानने पर आत्मग्लानि से कर्पूरावती ने प्राण त्याग दिएI