बिहार ब्रेकिंग डेस्क
विकास भवन में स्थित सभागार में कार्बन न्यूट्रल स्टेट बनाने की दिशा में ‘बिहार राज्य की जलवायु अनुकूलन एवं न्यून कार्बन उत्सर्जन विकास रणनीति’ प्रोजेक्ट के तहत प्रसार कार्यशाला का आयोजन शुक्रवार को किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ कोशी प्रमंडल की प्रमंडलीय आयुक्त नीलम चौधरी की अध्यक्षता में की गई। कार्यशाला में अपने विचार व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन न केवल मनुष्य बल्कि वनस्पति, जीव-जंतुओं एवं जानवरों के लिए भी अस्तित्व का संकट बन गया है। उन्होंने कहा कि सहरसा में आपदाओं का खतरा बहुत अधिक है, इसलिए यह इस तरह की तकनीकी कार्यशालाएं उत्साहवर्धक हैं। निकट भविषय में इस कार्यशाला के संदेश को जिला और पंचायत स्तर तक ले जाने की आवश्यकता है, ताकि जलवायु परिवर्तन से निपटने की रणनीतियों का जमीनी स्तर पर क्रियान्वयन सुनिश्चित किया जा सके। सहरसा जिलाधिकारी वैभव चौधरी ने अपने उद्बोधन में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए व्यक्तिगत और सामुदायिक स्तर पर प्रयास करने पर जोर दिया।
उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन का असर अत्यधिक गर्मी और कम वर्षा के रूप में देखा जा रहा है। प्रकृति का संतुलन बिगड़ रहा है। जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए जहाँ अंतर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर नीतियाँ बनाई जा रही हैं, वहीं हमारी भावी पीढ़ियों के लिए रहने योग्य पृथ्वी सुनिश्चित करने के लिए व्यक्तिगत प्रयास भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं। व्यक्तिगत प्रयास जल संरक्षण, प्लास्टिक का उपयोग ना करना और ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देने के रूप में हो सकते हैं।
कार्यशाला की विस्तृत जानकारी डब्लूआरआई इंडिया के प्रोग्राम प्रबन्धक डॉ शशिधर कुमार झा एवं मणि भूषण कुमार झा ने दी। मणि भूषण ने कहा कि भारत के वर्ष 2070 तक नेट ज़ीरो उत्सर्जन वाला देश बनने के लक्ष्य को पूर्ण करने में बिहार अपने योगदान के प्रति संकल्पबद्ध है। पिछले ढाई वर्षों के दौरान बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण परिषद (बीएसपीसीबी) ने संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) और डब्ल्यूआरआई इंडिया तथा अन्य संबंधित संगठनों की तकनीकी सहायता से बिहार राज्य के उक्त संकल्प को पूर्ण करने हेतु राज्यस्तरीय दीर्घकालीन दस्तावेज में अनुकूलन और न्यूनीकरण दोनों ही उपायों को जोड़कर राज्य में जलवायु संरक्षण से संबंधित कदम प्रस्तावित किए हैं।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 04 मार्च को इस रणनीति का राज्य स्तरीय क्लाइमेट कॉन्क्लेव में विमोचन किया था। डॉ शशिधर ने अपने सम्बोधन में जलवायु परिवर्तन अनुकूलन उपायों के बारे में बताते हुए फसल एवं कृषि प्रणाली में विविधता, सतही और भूजल का एकीकृत प्रबंधन, वन पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा, संरक्षण और पुनर्जनन, निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित करना और आपदा के समय आजीविका की सुरक्षा और संवर्द्धन का उल्लेख किया।
मंडन भारती कृषि महाविद्यालय की सहायक प्रोफेसर डॉ स्नेहा कुमारी ने विशेषज्ञ के रूप में संबोधित करते हुए कहा कि कृषि क्षेत्र जलवायु परिवर्तन के प्रति अति- संवेदनशील है, इसलिए जलवायु अनुकूल कृषि पद्धतियां बहुत महत्वपूर्ण है। जीरो टिलेज, धान के बीज़ सीधे बोना और संरक्षण जुताई जलवायु अनुकूल कृषि के कुछ तरीके हैं।
कार्यक्रम में उपस्थित विभिन विभागों के अधिकारीगण एवं अन्य हितधारकों ने भी अपने विचार साझा किये। प्रतिभागियों द्वारा उठाये गए मुद्दों में अक्षय ऊर्जा, उर्जा संरक्षण, शहरी हरियाली, वनों की कटाई और भूजल स्तर में गिरावट इत्यादि थे। कार्यशाला में उप – विकास आयुक्त सहरसा, संजय कुमार निराला; वन प्रमंडल अधिकारी सहरसा, प्रतीक आनंद; बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण परिषद के क्षेत्रीय पधादिकारी सेन कुमार; सहायक वन संरक्षक अनीश कुमार एवं अन्य संबंधित अधिकारी गण उपस्थित थे। यह कार्यशालाएं बिहार के सभी 09 प्रमंडलों में आयोजित की जा रही हैं। इस कड़ी में अगली 6 कार्यशालाएं अगस्त महीने में आयोजित की जाएंगी।