बिहार ब्रेकिंग डेस्क
शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव डॉ एस सिद्धार्थ शनिवार को एक बार फिर पटना की सड़क पर स्कूली बच्चों से बात करते दिखे। चिड़िया खाना (राजभवन) के पास सुबह 9.20 बजे कुछ लड़कियां स्कूल जाने के लिए ई-रिक्शा पर बैठी मिली। यह देख अपर मुख्य सचिव गाड़ी से उतरकर लड़कियों से बात की। उनसे पूछताछ करने लगे कि कितने बजे स्कूल है। छात्राओं ने कहा कि 9 बजे से है। उन्होंने लेट होने की वजह भी जानने की कोशिश की। जिस समय अपर मुख्य सचिव लड़कियों से बात कर रहे थे ई-रिक्श खड़ी थी और चालक कहीं और चला गया था। लड़कियां उन्हें नहीं पहचान पाई, लेकिन ई-रिक्श का चालक उन्हें पहचान लिया और प्रणाम किया। डॉ एस सिद्धार्थ ई-रिक्श का चालक से पूछते हैं कि स्कूल जाना है देरी क्यों कर रहे हो? इस पर ई-रिक्शा के चालक ने कहा कि जाम में फंस गए थे, इसलिए विलंब हो गई। अपर मुख्य सचिव ने लड़कियों से पूछा कि शिक्षक समय पर स्कूल आते है तो लड़कियों ने हां में जवाब दिया। उन्होंने लड़कियों को समय पर स्कूल पहुंचने की सलाह दी। दरअसल स्कूल की टाइमिंग 9.30 बजे हैं और बच्चे 9.45 में रोड पर ही थे। एस सिद्धार्थ ने सरकारी स्कूलों के प्रिंसिपलों को पहले ही आदेश दे रखा है कि स्कूल में समय की पाबंदी सख्ती से की जाए।
बता दें कि दो दिन पहले शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव डॉ एस सिद्धार्थ ट्रेन की स्लीपर बोगी में खड़ा होकर दानापुर से भोजपुर के बिहिया गये थे। इस दौरान ट्रेन में सवार यात्रियों से उन्होंने बिहार की शिक्षा व्यवस्था को लेकर राय जानने की कोशिश की। वही बिहिया स्टेशन पर उतने के बाद फुटपाठ के दुकानदारों से भी बातचीत की। फिर स्कूल के लिए पैदल ही निकल गये। इस दौरान भी छात्राओं से उन्होंने बातचीत की। पूछा कि स्कूल टाइम में बाहर क्यों निकली हो। तब छात्राओं ने कहा कि लंच टाइम है इसलिए कुछ काम से निकले थे। उस वक्त भी छात्राओं ने उन्हें नहीं पहचाना था लेकिन जब उसी स्कूल का निरीक्षण करने पहुंचे तब छात्राओं को मालूम चला की उनसे पूछताछ करने वाला कोई आम आदमी नहीं था बल्कि शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव थे। तब छात्राएं भी हैरान रह गयी।
बिहार में शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए डॉ एस सिद्धार्थ लगातार स्कूलों का निरीक्षण कर रहे हैं। अब 1991 बैच के आईएएस अधिकारी एस सिद्धार्थ एक बार फिर सुर्खियों में आ गये हैं। सिद्धार्थ का कहना है, ‘मैं शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए काम कर रहा हूं। इसके लिए जरूरी है कि हम बच्चों, शिक्षकों और अभिभावकों से बात करें और उनकी समस्याएं समझें। उन्होंने कहा कि उनका मकसद किसी को परेशान करना नहीं है, बल्कि शिक्षा व्यवस्था में सुधार लाना है।