अभिषेक मिश्रा-समाचार संपादक

कुछ साल पहले एक फिल्म देखी थी। उस फिल्म का डाॅयलाग बड़ा मशहूर हुआ था। डाॅयलाग था ‘फिल्में केवल तीन चीजों से चलती है एंटरटेनमेंट, एंटरटेनमेंट और एंटरटेनमेंट। हिन्दुस्तान में फिल्मों का एक बड़ा दर्शक वर्ग है। दर्शकों को मनोरंजन की खुराक चाहिए और इस खुराक की कीमत जो दर्शक चुकाते रहे हैं उससे से फिल्मों का एक बड़ा बाजार है। इसलिए फिल्मों के परिपेक्ष्य में उस फिल्म का यह डाॅयलाग शायद हमेशा प्रासंगिक रहेगा कि फिल्में एंटरटेनमेंट से चलती है। लेकिन अगर मनोरंजन और राजनीति का जिक्र साथ साथ होने लगे तो स्थिति थोड़ी विचित्र लगती है। यह सवाल भी है कि क्या राजनीति में भी आज सिर्फ एंटरटेनमेंट से हीं चलती है। या फिर सबकुछ एंटरटेनमेंट से हीं चलता है। क्योंकि सियासत और पत्रकारिता दोनों सवाल और समस्याओं को सुलझाती कम नजर आती है और मनोरंजन करती नजर आती है। नेता किसी श्राप देने लगे हैं, सीता माता को टेस्ट ट्यूब बेबी बताने लगे हैं। अपराध से त्रस्त किसी सूबे का उपमुख्यमंत्री अपराधियों के सामने हाथ जोड़ने लगा है अब इससे बड़ा मनोरंजन क्या हो सकता है। जिन से आप उम्मीद लगाये बैठे हैं वो अगर बे-सिरपैर की ऐसी बातें करने लगें तो या तो आप मुस्कुराएंगे या फिर चकित हो जाएंगे दोनों हीं मनोरंजन है इसलिए यह सवाल है कि क्या सियासत भी एंटरटेनमेंट से हीं चल रही है।
टेलीविजन चैनलों सवालों के जवाब नहीं मिलते उल्टे वे रोज नया सवाल छोड़ जाते हैं कि क्या पत्रकारिता भी अब मनोरंजन से हीं चलती है क्योंकि टीवी चैनलों के डिबेट से सिर्फ मनोरंजन हीं हो रहा है। विपक्ष भी बेवस और कमजोर है और अपनी आदतों से लाचार है। सरकार को घेरने की कवायद में गलतियां कर बैठती है इसलिए विपक्ष को सिरियसली कोई सिरियसली नहीं लेता। तो सरकारों में शामिल लोग खुद विपक्ष की जरूरत पूरी करने में लगे हैं। सियासत विकल्प बहुत जल्दी तलाश लेती है। इसलिए राजनीति ने भी विकल्प तलाश लिया है विपक्ष का। क्योंकि विपक्ष अपनी आदतों से लाचार है इसलिए सरकार पर उसका हमला बेअसर है। वक्त-वेवक्त विपक्ष की फजीहत हो जाती है। दरअसल विपक्ष एंटरटेनमेंट से हीं चल रहा है। उस बड़े देश में जहां कई गंभीर सवाल हैं, सवाल सरकार से हैं सवाल विपक्ष से हैं ौर सवाल आवाम से भी हैं। इधर सवाल, उधर सवाल, लेकिन जवाब कहीं नहीं। विपक्ष भी मनोरंजन करने में जुटा है। संसद में आंख मारकर मनोरंजन का विपक्षी प्रयास भी बेमिशाल है। अपराध से त्रस्त सूबे बिहार में वहां के डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी अपराधियों के आगे हाथ जोड़ रहे हैं अब इससे बड़ा एंटरटेनमेंट और क्या हो सकता है। चारो ओर मनोरंजन हैं। बिहार में अपराध की बढ़ती घटनाओं को लेकर विपक्ष अक्सर सरकार पर हमलावर रहता है लेकिन भले इन हमलों से सरकार का क्या बिगड़ेगा? मजबूत विपक्ष की कमी महसूस हो रही होगी इसलिए सुशील मोदी खुद विपक्ष-विपक्ष खेलने लगे। बिहार में प्रमुख विपक्षी पार्टी का पूरा परिवार भ्रष्टाचार के मामलों में आरोपी है, एक और विपक्षी पार्टी गुटबाजी से हीं नहीं उबर पा रही ऐसे में विपक्ष का हमला भला क्या असर करता इसलिए एक तरह से सुशील मोदी ने विपक्ष की भूमिका निभाते हुए खुद हीं एक बयान देकर विपक्ष की खानापूर्ति कर बैठे। उस बयान से जो नुकसान हुआ या हो सकता है वो विपक्षी हमले से नहीं हो सकता इसलिए सुशील मोदी असली विपक्ष की भूमिका निभा चुके हैं। आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ कि सरकार के किसी कद्दावर मंत्री को हाथ जोड़कर अपराधियों से कुछ दिन तक शांत रहने की विनती करनी पड़ी। अपराध नियंत्रण और सुशासन पर उठते सवालों पर बेबसी और लाचारी का ऐसा खुला प्रदर्शन राजनीति के किसी दौर में नहीं हुआ। बिहार में यह पहली बार हुआ और शायद देश में भी तो यह भी अपने आपमें एक प्रकार का मनोंरजन है। क्योंकि पहली बार हुआ है। बयान से हमें आश्चर्य हुआ बिहार की राजनीति में उबाल आया। इसलिए यकीन मानिए सिर्फ फिल्में नहीं सबकुछ अब एंटरटेनमेंट से हीं चलता हैं, सियासत भी और पत्रकारिता भी।