
अभिषेक मिश्रा-समाचार संपादक
बिहार ब्रेकिंगः पीके यानि प्रशांत किशोर की पाॅलिटिकल एंट्री पर कल सांसद सह जन अधिकार पार्टी के संरक्षक पप्पू यादव ने कहा कि नीतीश कुमार ने प्रशांत किशोर को ज्यादा हीं तवज्जो दे दी है। प्रशांत किशोर कोई अलादीन का चिराग थोड़े हीं है कि वे आते हीं सबकुछ बदल देंगे? जब पप्पू यादव ने यह कहा तो हमारे मन में भी एक सवाल आया कि क्या बिहार की राजनीति के लिए यह बड़ा सवाल नहीं है कि आखिर करिश्में की वो कौन सी कुबत प्रशांत किशोर रखते हैं जिनके आने से सबकुछ बदल जाएगा? इस वाजिब सवाल के जवाब तलाशे जाने जरूरी है। सवाल इसलिए हैं क्योंकि लालू यादव के पंद्रह वर्षों के राजनीतिक और रणनीतिक तिलिस्म को भेदने का करिश्मा करने वाले नीतीश कुमार आज किसी से करिश्में की उम्मीद कर रहे हैं तो क्या प्रशांत किशोर में वो कुबत है कि नीतीश की उम्मीद के मुताबिक करिश्मा कर पाएं?

नीतीश कुमार को पीके से क्यों है करिश्मे की उम्मीद?
यह जानना भी बेहद जरूरी है कि लगभग डेढ़़ दशक तक बिहार की सत्ता के सिरमौर बने रहने वाले नीतीश कुमार को आखिर प्रशांत किशोर पर इतना भरोसा क्यों है, आखिर क्यों वे प्रशांत किशोर से करिश्मे की उम्मीद लगाये बैठे हैं? दरअसल प्रशांत किशोर के नाम कई कथित उपलब्धियां दर्ज है। 2014 के लोकसभा चुनाव में अपने रणनीतिक हथियारों से बीजेपी की हर मुश्किल आसान कर उसे 2014 का लोकसभा चुनाव जीताने का श्रेय दिया जाता है। बाद में कथित रूप से बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से उनके मतभेद हुआ तो 2015 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने इन पर दांव खेला और महागठबंधन का रणनीतिक मोर्चा संभाला। एक तरफ जहां बीजेपी मोदी लहर पर सवार थी और दूसरे राज्यों में चुनाव जीत रही थी हांलाकि दिल्ली में हार भी मिली थी। उस राजनीतिक अर्श पर खड़े बीजेपी को 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा। इसक श्रेय भी प्रशांत किशोर को दिया गया। इसके बाद प्रशांत किशोर सिर्फ एक राजनीतिक रणनीतिकार नहीं रहे बल्कि चुनावी जीत की गारंटी बन गये। हांलाकि इनके जीत का तिलिस्म भी टूट गया और यूपी में सपा-कांग्रेस गंठबंधन के चुनावी रणनीतिकार बने उसके बावजूद यूपी में सपा-कांग्रेस हारी। इस हार के बार प्रशांत किशोर के रणनीतिक चमत्कार पर सवाल उठने लगे।
क्यों उठ रहे सवाल?
जदयू के दरवाजे से पीके की पाॅलिटिकल एंट्री पर सवाल भी उठ रहे हैं, लगातार यह कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार ने प्रशांत किशोर को कुछ ज्यादा हीं तवज्जो दे दी है यह सवाल क्यों उठ रहे हैं यह जानना भी जरूरी है। दरअसल नीतीश कुमार देश की राजनीति में एक बड़ा कद रखते हैं। उनकी छवि एक बेहद दृढ. इच्छाशक्ति वाले मुख्यमंत्री की रही है। देश और दुनिया से उन्हें तारीफ मिलती रही है और बिहार के उसके पुराने दौर जिसे कथित रूप से जंगलराज कहा जाता है उस दौर से निकालने का श्रेय सीएम नीतीश कुमार को जाता है। डेढ़ दशकों तक बिहार की सत्ता पर काबिज नीतीश कुमार ने इन डेढ़ दशकों के दौरान राजनीति में कई बार विपरीत परिस्थितियों का सामना किया लेकिन आसानी से उबर गये क्योंकि भले हीं नीतीश कुमार के बारे में उनके राजनीतिक विरोधी यह कहते हों कि नीतीश कुमार मास लीडर नहीं है लेकिन देश की राजनीति का यह शास्वत सच है कि नीतीश चाहे जिस राजनीतिक खेमे का हिस्सा हो राजनीति का हर खेमा उन्हें अपने पाले में लाने की कोशिशें करता रहा है। नीतीश के सुशासन पर कई बार सवाल उठे हैं, उनकी शराबबंदी पर सवाल उठे और बिहार में हुई कुछ बहुचर्चित घटनाओं को लेकर उनपर सवाल उठे बावजूद इसके नीतीश कुमार देश में एक साफ-सुथरी राजनीति और विकास के लिए दृढ़संकिल्पता के चेहरे के रूप में स्थापित रहे हैं। किसी भी चुनाव में एंटी इनकंबेंसी यानि सत्ता विरोधी लहर का सामना नीतीश कुमार को नहीं करना पड़ा इसलिए यह सवाल उठ रहा है कि खुद कई राजनीतिक करिश्में करने वाले नीतीश कुमार आखिर प्रशांत किशोर से किस करिश्में की उम्मीद कर रहे हैं?
प्रशांत किशोर की चुनौतियां
दरअसल प्रशांत किशोर के लिए असली अग्नि परीक्षा का वक्त अब है। नीतीश कुमार जिन सियासी मुश्किलों में घिरें हैं उससे उबार पाना प्रशांत किशोर के लिए आसान नहीं होगा। हालिया दौर में बिहार दुष्कर्म की घिनौनी वारदातों से त्रस्त रहा है। मुजफ्फरपुर बालिका गृहकांड और सृजन घोटाले को लेकर विपक्ष सरकार पर लगातार हमलावर है, इन मामलों में सरकार में शामिल लोगों पर संलिप्तता के आरोप हैं। मुजफ्फरपुर बालिका गृहकांड मामले में तो सरकार की एक मंत्री को इस्तीफा तक देना पड़ा। ऐसे में इन घटनाओं से उपजी धारणाओें के नुकसान से नीतीश कुमार को बेअसर रखना प्रशांत किशोर के लिए बड़ी चुनौती होगी। लगातार यह कयास लगते हैं कि चूकी नीतीश कुमार के पास अब सीमित विकल्प हैं इसलिए बीजेपी उनकी इस मजबूरी को भुनाती है और एनडीए में उनकी पहली जैसी हैसियत नहीं रही प्रशांत किशोर के लिए यह चुनौती होगी कि बीजेपी को जदयू की उपयोगिता और नीतीश कुमार की अहमियत का समय-समय पर एहसास दिलाते रहा जाए। दरअसल मौजूदा वक्त में बिहार राजनीति के बेहद दिलचस्प दौर में है। 2019 की राजनीतिक रणभूमि में अगर नीतीश कुमार की जीत हुई तो जाहिर है श्रेय प्रशांत किशोर को मिलेगा और अगर गड़बड़ी हुई तो ठीकरा भी प्रशांत किशोर के सर फोड़ा जाएगा तब सवाल प्रशांत किशोर के रणनीतिक करिश्मे पर उठने लगेंगे और नीतीश कुमार के इस नये राजनीतिक दांव पर भी उठेंगे जो उन्होंने प्रशांत किशोर को जदयू में लाकर खेला है।