12 अगस्त को होगा सम्पूर्ण मिथिला क्षेत्र में रक्षाबंधन। ठाकुर प्रसाद कैलेंडर एवं ऋषिकेश पंचांग वाराणसी में 11 अगस्त अंकित होने के कारण बनी उहाफोह की स्थिति। 11 अगस्त को प्रातः 9 बजकर 42 मिनट 48 सेकेंड से रात्रि 8 बजकर 33 मिनट तक मिथिला क्षेत्र रहेगा भद्रा, रक्षाबंधन के लिए भद्रा वर्जित है इसलिए पूर्णिमासी तिथि होने के बाद भी 11 अगस्त को नहीं मनाया जायेगा रक्षा बंधन- आचार्य अविनाश शास्त्री
बिहार ब्रेकिंग – नीरज कुमार
रक्षाबंधन नजदीक आते ही बाजारों में रंग-बिरंगी राखियां सजने लगी है। परदेश में रहने वाले भाईयों के लिए बहन राखी कुरियर के माध्यम से भेजना शुरू कर दिया है। लेकिन इस बीच कैलेंडर और पंचांग में प्रकाशित तिथियों को लेकर आम लोगों के बीच उहापोह की स्थिति बनी हुई है। एक तरफ जहां घर-घर में प्रचलित ठाकुर प्रसाद कैलेंडर ने 11 अगस्त को रक्षाबंधन घोषित किया गया है वहीं दूसरी ओर मिथिला के विभिन्न पंचांग में 12 अगस्त को रक्षाबंधन की बात कही जा रही है। इस संदर्भ में ज्योतिषाचार्य अविनाश शास्त्री ने कहा है कि ठाकुर प्रसाद कोई पंचांग नहीं बल्कि यह एक कैलेंडर है और हिंदू पर्व त्योहारों का निर्णय पंचांग एवं ज्योतिषी ग्रंथ के अनुसार होता है। वाराणसी से प्रकाशित होने वाले ऋषिकेश पंचांग में 11 अगस्त को रक्षाबंधन कहा गया है लेकिन उसमें भी भद्रा के समय में रक्षाबंधन को वर्जित माना गया है।
क्या है ज्योतिषीय प्रमाण
रामाचार्य जी के मुहूर्त चिंतामणि में ऐसा वर्णन है कि पूर्णिमा तिथि के प्रारंभ का आधा भाग भद्रा होता है जिसके अनुसार 11 अगस्त को प्रातः 9:43 ने जब पुर्णिमा तिथि का प्रवेश हुआ है तो प्रवेश के साथ ही भद्रा प्रारंभ हो गया है एवं यह रात्रि के 8:33 तक रहेगा यानी 11 अगस्त को रात्रि 8:43 के बाद रक्षाबंधन का शुभ मुहूर्त प्रारंभ होता है जो कि रात्रि काल में रक्षाबंधन व्यावहारिक है।
रक्षाबंधन मनाये जाने का शुभ मुहूर्त
12 अगस्त को प्रातः सूर्योदय काल से ही पूर्णिमा की तिथि प्रारंभ हो जाएगी। जो प्रातः 7 बजकर 27 मिनट तक रहेगा एवं भद्रा काल भी नहीं रहेगा। अतः दिनांक 12 अगस्त को ही प्रातःकाल रक्षाबंधन शास्त्र सम्मत है।
क्या है पंचांगों का निर्णय
आचार्य अविनाश शास्त्री कहते हैं कि शास्त्र सम्मत मिथिला के कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय से प्रकाशित विश्वविद्यालय पंचांग, वैदेही पंचांग, विद्यापति पंचांग, मैथिली पंचांग आदि सभी सम्मानित पंचांग में 12 अगस्त को ही रक्षाबंधन का निर्णय दिया गया है जोकि उचित है।
वैदिक रक्षासूत्र
रक्षासूत्र मात्र एक धागा नहीं बल्कि शुभ भावनाओं व शुभ संकल्पों का पुलिंदा है। यही सूत्र जब वैदिक रीति से बनाया जाता है और भगवन्नाम व भगवद्भाव सहित शुभ संकल्प करके बांधा जाता है तो इसका सामर्थ्य असीम हो जाता है। प्रति वर्ष श्रावणी -पूर्णिमा को रक्षाबंधन का त्यौहार होता है। इस दिन गुरु अथवा पुरोहित अपने यजमान एवं शिष्यों को साथ ही इसी दिन बहनें अपने भाई को रक्षा-सूत्र बांधती हैं। यह रक्षासूत्र यदि वैदिक रीति से बनाई जाए तो शास्त्रों में भी उसका बड़ा महत्व है।
कैसे बनायें वैदिक राखी, वैदिक राखी का महत्व
वैदिक राखी बनाने के लिए सबसे पहले एक छोटा-सा ऊनी, सूती या रेशमी पीले कपड़े का टुकड़ा लें। दूर्वा, अक्षत (साबूत चावल), केसर या हल्दी, शुद्ध चंदन,सरसों के साबूत दाने पांच चीजों को मिलाकर कपड़े में बांधकर सिलाई कर दें। फिर कलावे से जोड़कर राखी का आकार दें। सामर्थ्य हो तो उपरोक्त पांच वस्तुओं के साथ स्वर्ण भी डाल सकते हैं। वैदिक राखी में डाली जानेवाली वस्तुएं हमारे जीवन को उन्नति की ओर ले जानेवाले संकल्पों को पोषित करती हैं। जैसे दूर्वा का एक अंकुर जमीन में लगाने पर वह हजारों की संख्या में फैल जाती है। वैसे ही हमारे भाई या हितैषी के जीवन में भी सदगुण फैलते जायें बढ़ते जायें। इस भावना का द्योतक है दूर्वा। दूर्वा भगवान गणेश को प्रिय है अर्थात हम जिनको राखी बांध रहे हैं उनके जीवन में आनेवाले विघ्नों का नाश हो जाय। हमारी भक्ति और श्रद्धा भगवान के गुरु के चरणों में अक्षत हो। अखंड और अटूट हो। कभी क्षत-विक्षत न हो यह अक्षत का संकेत है। अक्षत पूर्णता की भावना के प्रतीक हैं। जो कुछ अर्पित किया जाय पूरी भावना के साथ किया जाय। केसर की प्रकृति तेज होती है अर्थात हम जिनको यह रक्षासूत्र बांध रहे हैं उनका जीवन तेजस्वी है। उनका आध्यात्मिक तेज, भक्ति और ज्ञान का तेज बढ़ता जाय। केसर की जगह पिसी हल्दी का भी प्रयोग कर सकते हैं। हल्दी पवित्रता व शुभ का प्रतीक है। यह नजरदोष व नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करती है तथा उत्तम स्वास्थ्य व सम्पन्नता लाती है। चंदन दूसरों को शीतलता और सुगंध देता है। यह इस भावना का द्योतक है कि जिनको हम राखी बांध रहे हैं उनके जीवन में सदैव शीतलता बनी रहे। कभी तनाव न हो। उनके द्वारा दूसरों को पवित्रता, सज्जनता व संयम आदि का सुगंध मिलती रहे। उनकी सेवा सुवास दूर तक फैले। सरसों तीक्ष्ण होती है।इसी प्रकार हम अपने दुर्गुणों का विनाश करने में समाज द्रोहियों को सबक सिखाने में तीक्ष्ण बनें।अतः यह वैदिक रक्षासूत्र वैदिक संकल्पों से परिपूर्ण होकर सर्व-मंगलकारी है ।
रक्षासूत्र बांधते समय इस मंत्र का करें उच्चारण
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वां अभिबध्नामि१ रक्षे मा चल मा चल।।
ओम यदाबध्नन्दाक्षायणा हिरण्यं,
शतानीकाय सुमनस्यमाना:।
तन्मSआबध्नामि शतशारदाय, आयुष्मांजरदृष्टिर्यथासम्।।
इस मंत्रोच्चारण व शुभ संकल्प सहित वैदिक राखी बहन अपने भाई को, मां अपने बेटे को, दादी अपने पोते को बांध सकती है। शिष्य भी यदि इस वैदिक राखी को अपने सद्गुरु को प्रेम सहित अर्पण करता है तो उसकी सब अमंगलों से रक्षा होती है भक्ति बढ़ती है। महाभारत में यह रक्षा सूत्र माता कुंती ने अपने पोते अभिमन्यु को बांधी थी। जब तक यह धागा अभिमन्यु के हाथ में था तब तक उसकी रक्षा हुई। धागा टूटने पर अभिमन्यु की मृत्यु हुई। इस प्रकार इन पांच वस्तुओं से बनी हुई वैदिक राखी को शास्त्रोक्त नियमानुसार बांधते हैं हम पुत्र-पौत्र एवं बंधुजनों सहित वर्ष भर सूखी रहते हैं।
रक्षा सूत्रों के विभिन्न प्रकार
विप्र रक्षा सूत्र- रक्षाबंधन के दिन किसी तीर्थ अथवा जलाशय में जाकर वैदिक अनुष्ठान करने के बाद सिद्ध रक्षा सूत्र को विद्वान पुरोहित ब्राह्मण द्वारा स्वस्तिवाचन करते हुए यजमान के दाहिने हाथ मे बांधना शास्त्रों में सर्वोच्च रक्षा सूत्र माना गया है। गुरु रक्षा सूत्र- सर्व सामर्थ्यवान गुरु अपने शिष्य के कल्याण के लिए इसे बांधते है। मातृ पितृ रक्षा सूत्र- अपनी संतान की रक्षा के लिए माता पिता द्वारा बांधा गया रक्षा सूत्र शास्त्रों में “करंडक” कहा जाता है। भातृ रक्षा सूत्र- अपने से बड़े या छोटे भैया को समस्त विघ्नों से रक्षा के लिए बांधी जाती है देवता भी एक दूसरे को इसी प्रकार रक्षा सूत्र बांध कर विजय पाते है। स्वसृ रक्षासूत्र- पुरोहित अथवा वेदपाठी ब्राह्मण द्वारा रक्षा सूत्र बांधने के बाद बहन का पूरी श्रद्धा से भाई की दाहिनी कलाई पर समस्त कष्ट से रक्षा के लिए रक्षा सूत्र बांधती है। भविष्य पुराण में भी इसकी महिमा बताई गई है।इससे भाई दीर्घायु होता है एवं धन-धान्य सम्पन्न बनता है। गौ रक्षा सूत्र- अगस्त संहिता अनुसार गौ माता को राखी बांधने से भाई के रोग शोक डोर होते है। यह विधान प्राचीन काल से चला आ रहा है। वृक्ष रक्षा सूत्र -यदि कन्या को कोई भाई ना हो तो उसे वट, पीपल, गूलर के वृक्ष को रक्षा सूत्र बांधना चाहिए पुराणों में इसका विशेष उल्लेख है। बरगद या पीपल के धागा लपेटने की प्रक्रिया रक्षा बंधन से ही संबंधित है।