भिखारी अपने स्त्री विमर्श, दलित विमर्श और श्रम प्रवर्सन की समस्या के मद्देनज़र आज भी समान रुप से प्रासंगिक हैं: डॉ लाल बाबू यादव
बिहार ब्रेकिंग
लोक कलाकार, अन्तर्राष्ट्रीय नाटककार भिखारी ठाकुर की 51वीं पुण्यतिथि पर एक विचार गोष्ठी का आयोजन भिखारी ठाकुर लोक साहित्य एवं संस्कृति महोत्सव और भारतीय जननाट्य संघ (इप्टा), छपरा के संयुक्त तत्वावधान में “भिखारी ठाकुर की प्रासंगिकता” विषय पर राजयपाल कॉलेज के श्री लक्ष्मी नारायण वाचनालय में डॉ लाल बाबू यादव की अध्यक्षता में किया गया जिसमें बातौर मुख्य अतिथि विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ, ईशुपुर, भागलपुर के उपकुलपति प्रो रामजन्म मिश्र उपस्थित रहे। विचार गोष्ठी में विशिष्ट अतिथि श्री रामजन्म मिश्र ने भी अत्यंत विस्तार से अपने संबोधन में भिखारी ठाकुर की प्रासंगिकता के विषय में बताया।
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उन्होंने बतलाया कि भिखारी ठाकुर ने अपनी रचनाओं में उन समस्याओं का भी जिक्र कर दिया था जिनका संबंध अपने समय में तो नहीं था लेकिन जिन से मनुष्य आज दो-चार हो रहा है। उन्होंने अपनी रचनाओं में उस समय ही वृद्ध आश्रम की बात की थी जो कि उस समय जन सामान्य रूप से प्रचलित नहीं था किंतु आजकल हम देख रहे हैं कि वृद्ध आश्रम की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हो रही है । इसके अतिरिक्त उन्होंने सामाजिक कुरीतियों पर भी अपनी रचनाओं के माध्यम से प्रहार किया। जयप्रकाश विश्वविद्यालय के पॉलिटिकल साइंस के भूतपूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डॉ लाल बाबू यादव ने विस्तार से भिखारी ठाकुर के ऊपर चर्चा की एवं अपने व्यक्तिगत अनुभव को मिलाते हुए बताया कि भिखारी ठाकुर आज भी क्यों प्रासंगिक है। उन्होंने बतलाया कि भिखारी ठाकुर जो है उन्होंने अपनी रचनाओं के विषय वस्तु वही रखी जो आमजन की समस्याएं थी उन्होंने उसी भाषा का प्रयोग अपनी रचनाओं में किया जो आम फ़हम के बीच काफी प्रचलित थे।
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उन्होंने भिखारी ठाकुर की रचना के प्रभाव को एक उदाहरण के माध्यम से समझाया। इसके कवल विषय प्रवेश करते इप्टा छपरा के सचिव, रंगकर्मी अधिवक्ता डॉ रंजन ने अपने शोध पत्र “भिखारी की विदेशिया और विदेशिया की रंग परिकल्पना” मलिक जी को समर्पित करते हुए इसके अंशों का वाचन किया। गोष्ठी में वक्ता डॉ अमित रंजन (सहायक प्रोफ़ेसर, राम जयपाल कॉलेज) ने भिखारी ठाकुर के नाटकों की विषय वस्तु का संक्षेप में परिचय देते हुए उसमें से उनके नाटकों में प्रासंगिकता के तत्वों पर विस्तार से प्रकाश डाला। इस क्रम में उन्होंने विशेष रूप से गबरघिचोर, बेटीबेचवा अथवा अथवा बेटी वियोग एवं विदेशिया नाटक के विषय वस्तु की चर्चा की। अमित रंजन ने कहा कि उनके नाटकों में ग्रामीण जीवन का यथार्थ चित्रण है वह नवजागरण के संवाहक हैं उनकी रचनाओं में नवजागरण के तत्व मिलते हैं, उनकी रचनाओं में नारी के विविध रूप यथा बालिका, विवाहिता, माता, प्रियसी एवं वियोगिनी का रूप मिलता है। उन्होंने कहा कि कहा कि इनकी रचनाओं में लोक संपृक्ति एवं दलित विमर्श भी विद्यमान है। इन्होंने अपने नाटकों में लोक से जुड़े विषयों को उठाया निम्न वर्ग के जीवन से जुड़ी समस्याओं को उठाया, पात्रों के नाम भी वैसे ही है जैसे झांटुल इत्यादि।
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वरिष्ठ अधिवक्ता सुरेन्द्र नाथ त्रिपाठी ने अपने वक्तव्य में भिखारी ठाकुर की रचनाओं के तीन तत्वों की ओर श्रोताओ का ध्यान इंगित किया। शिवजन्म राय कॉलेज के प्राचार्य डॉ अरुण कुमार ने अपने सम्बोधन में भिखारी ठाकुर से जुड़े हुए अपने जीवन के संस्मरण को सुनाया। भिखारी ठाकुर के पुण्यतिथि के अवसर पर रंजीत गिरी ने नाम भिखारी काम भिखारी गाना प्रस्तुत किया। उनके बेटी बेचवा नाटक से गाना प्रस्तुत किया। अध्ययन केंद्र में इस गोष्ठी का आयोजन के पूर्व भिखारी ठाकुर चौक पर भी भिखारी ठाकुर के मूर्ति पर माल्यार्पण किया गया था। वकील गोष्ठी का संचालन डॉक्टर अमित रंजन पत्रकार ने किया। गोष्ठी का आरंभ भिखारी ठाकुर के ऊपर माल्यार्पण करके किया गया।