बिहार ब्रेकिंग-रवि शंकर शर्मा-पटना ग्रामीण
भारत साधनाओं और साधकों का देश है, हठयोग, योग, ध्यान, साधना यहाँ की हजारों वर्ष पुरानी परंपरा रही है जो विश्व मे कहीं और देखने को नहीं मिलता। शारदीय नवरात्री में साधक विभिन्न तरह के साधनाओं का प्रयोग करते हैं। लोग अपने अपने घरों में कलश का स्थापना करते हैं तथा स्थापित कलश के नीचे चारों तरफ कुष्मांडा के निकलने की प्रतीक्षा करते हैं और इस तरह पूरी पवित्रता और नियमों से युक्त ये व्रत पूरा होता है।पिछले कुछ वर्षों से कई साधकों को आपने सीने पे कलश स्थापित करते देखा होगा, परन्तु उस कलश के नीचे अक्सर लकड़ी का तख्त भी देखा होगा, ताकि कलश हिल ना पाये।
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परन्तु आज हम आपको एक ऐसे साधक का दर्शन करवा रहे है जो सीधे अपने सीने पर कलश स्थापित करते हैं। इस मे 5 से लेकर 10 किलोग्राम तक वजन होता है। फिर भी पिछले कई वर्षों से ऐसा ही करते आ रहे हैं। बेगूसराय जिले के बछवाड़ा के रहने वाले राम बच्चन सिंह ऐसे ही साधक हैं, जो हर साल अपने सीने पर ही कलश स्थापित करते हैं, लोगो का मानना है कि इन्हें देवी माँ की विशेष कृपा प्राप्त है। और इसलिये लोग नवरात्री में इनके माध्यम से माँ आदि शक्ति को अपनी अर्जी लगाते रहते हैं। हर साल इनका स्थान बदलते रहता है और विभिन्न पूजा पंडालों में घूम घूम कर ये कलश स्थापित करते रहते हैं। इस वर्ष मोकामा के हाथीदह दुर्गा मंदिर में इन्होंने कलश स्थापित कर रखा है, जिसके दर्शन, अर्जी और आशीर्वाद के लिये लोग दूर दूर से आते रहते हैं। इन्होंने बताया कि ऐसा करने के लिये कलश स्थापना से 6 दिन पूर्व ही ये अन्न जल का त्याग कर देते हैं। यानी इनका उपवास सामान्य साधकों की तरह 9 दिन का नही बल्कि 15 दिनों का होता है।