
एक बड़े राज्य की राज्यपाल ने सस्ते भोजन की महत्ता बताते हुए एक समारोह में कहा कि भोजन मिले तो कोई अपराध नहीं करना चाहेगा. इस वाक्य का तर्कशास्त्रीय विस्तार करें तो इसके कई मतलब निकलते हैं जैसे अपराध केवल गरीब करता है क्योंकि वही भूखा होता है या जो अपराध संपन्न वर्ग करता है वह अपराध नहीं होता क्योंकि उसे करने वाला भूखा नहीं होता. याने अगर एक मंत्री पुलिस अफसर से १०० करोड़ हर माह उगाहने का सहज तरीका बताता है तो न तो मंत्री अपराधी है न हीं अफसर क्योंकि दोनों भूखे नहीं हैं. वह पुलिस कमिश्नर भी नहीं जिसके सामने उसके मातहत से यह सब कहा गया फिर उसने बाद महीनों तक कुछ नहीं कहा लेकिन जैसे हीं पद से हटाया गया तो उसे ब्रह्मज्ञान हो गया और उसने मुख्यमंत्री को लिख मारा। एनसीपी के नेता जो उस मंत्री को बचाये वह भी अपराधी नहीं, जो मुख्यमंत्री यह सब कुछ सरकार जाने के भय से सुनकर धृतराष्ट्र बना रहे वह भी नहीं क्योंकि ये सब कभी भूख से नहीं तड़पे और अगर तड़पे भी तो अति-भक्षण से और वह भी अनाज का नहीं.
भात-भात करती मरी संतोषी ने तो चोरी नहीं की
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हाँ, भूख से मरी झारखण्ड के सिमडेगा की १२-वर्षीय संतोषी. उसकी मौत भात-भात की रट लगते हुए हुई. पर महामहिम, न तो बालिका ने, न हीं उसके मां-बाप ने चोरी की या डाका डाला जिसे “भरे-पेट” वाले संगीन अपराध कहते हैं. दरअसल, परिवार के कोटे का अनाज छः माह से नहीं मिल रहा था क्योंकि उसका राशन कार्ड निरस्त कर दिया गया था. कारण था उस कार्ड का आधार नंबर से लिंक न होना. संतोषी के बाप का कहना था कि अपनी मजदूरी छोड़ कर कई बार वह लिंक करने दफ्तर गया लेकिन हर बार “नेट नहीं है” जैसा कुछ कह कर वापस कर दिया जाता था. याने सिस्टम दोषी था.
अब महामहिम, इस सिस्टमिक दोष के पीछे का किस्सा भी जान लीजिये.
सिस्टम के दोष के पीछे क्या ?
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संसद को फ़रवरी, २०१७ में बताया कि आधार से लिंक करने की प्रक्रिया के बाद ३.९५ करोड़ फर्जी राशन कार्ड निरस्त किये गए. यह बात सरकार की तारीफ में और आधार की अच्छाई बताते हुए की गयी थी. जाहिर है जब भरे पेट वाला अपनी तारीफ करेगा तो गरीब को अपराधी बनाना लाजिमी होगा. लिहाज़ा वह उन “फर्जी राशन कार्डों” को पहले पहचानेगा (याने अपराधी पहचानेगा) और फिर उसे अपराध की सज़ा देगा. लेकिन बाद की जानकारियों से पता चला कि जिन गरीबों के राशन कार्ड निरस्त किये गए उनमें से अधिकांश मामलों में तकनीकी, प्रशासनिक और भ्रष्टाचार-जनित अक्षमता एक बड़ा कारण था. याने अपराध भूखे का नहीं सिस्टम में बैठे और हर दस साल पर पे कमीशन के वरदान से सिंचित होने वालों का था. सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर एक अपील सुनते हुए कहा कि इन कमियों की वजह से गरीबों का अनाज पाए जाने का अधिकार क्यों ख़त्म किया गया जबकि जरूरत थी कि इन कमियों को दूर किया जाये ? इन सन्दर्भ में कोर्ट के सामने झारखण्ड के सिमडेगा का २८ सितम्बर, २०१७ का एक मामला आया जिसमें उपरोक्त दलित परिवार का राशन कार्ड छः माह से इस आधार पर रद्द कर दिया गया था कार्ड आधार से लिंक नहीं था. दरअसल जहाँ केंद्र सरकार आधार से लिंक न होने वाले राशन या अन्य पहचान पत्रों को फर्जी मानने लगी वहीँ राज्य की सरकारों को एक मौका मिला इस मद में होने वाले खर्च में कटौती का और भ्रष्ट अधिकारी-दुकानदार गठजोड़ को इसके नाम पर बेहद सस्ता राशन ऊँचे दामों में बेचने का धंधा शुरू करने का.
गरीबों की शिकायत नक्कार खाने में तूती की आवाज बन कर रह गयी. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत देश दो-तिहाई लोगों को पांच किलो अनाज प्रति माह एक से तीन रुपये की दर से मिलता है. सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने तीन साल पहले कहा था कि आधार का औचित्य कल्याणकारी योजनाओं को सही तरीके और तेजी से लागू करने में है. साथ हीं अगर देश के दो-तिहाई लोग लगभग मुफ्त अनाज मिल रहा है तो भारत दुनिया के १०७ देशों में भूख सूचकांक में ९४ वें स्थान पर क्यों. क्या भ्रष्टाचार और राज्य सरकारों की अकर्मण्यता बाधा बन रही है? सुप्रीम कोर्ट ने अब नाराजगी व्यक्त की है कि सिस्टम त्रुटिपूर्ण है तो गरीबों को सजा क्यों? मुद्दा सरकार की नीयत का नहीं, प्रशासनिक शिथिलता का है.
दोष किसका है महामहिम ? एक नमूना देखें
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एक राज्य के मंत्री ने किस पुलिस अधिकारी से कितने करोड़ प्रतिमाह मांगे या किसी अपराधी भाव वाले अधिकारी को किसकी सिफारिश से दुबारा पद पर लाया गया था, यह शायद हीं कभी सत्य की तराजू पर तौला जा सके. लेकिन देश में जो दशकों से अनेक राज्यों में स्पष्ट और सरे आम भ्रष्टाचार हो रहा है उन पर भी हमारे समाज और सत्ताधरी वर्ग की चेंतना नहीं जगती. अपराध न्यायशास्त्र में फांसी देने का औचित्य केवल एक माना गया है –क्या उस अपराध ने समाज की चेतना झकझोरी है? लेकिन भ्रष्टाचार के लिए शायद नैतिक-शास्त्र में भी ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है. इसका एक ताज़ा उदाहरण देखें. पूरे पंजाब में धान का कुल उत्पादन लगभग १८.४ मिलियन टन हुआ लेकिन इस वर्ष सरकारी समर्थन मूल्य पर इस राज्य में २०.६ मिलियन टन धान बिका, याने उत्पादन से दो मिलियन टन ज्यादा. दुनिया का बड़ा से बड़ा जादूगर यह चमत्कार नहीं कर सकता. कृषि-अर्थशास्त्र के अनुसार कर राज्य में किसान उत्पादन का कम से कम २० से ३० प्रतिशत अनाज अपने खाने, बीज और जानवरों के लिए रखता है या नहीं बेचता. इस चमत्कार का सीधा मतलब है या तो धान की मिलों ने वही धान दो बार या तीन बार किसानों के नाम पर एमएसपी पर बेच कर सरकार को चूना लगाया या अन्य पड़ोसी राज्य से यह धान लाभ पंजाब में लाया गया. इसके पहले हर वर्ष मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में यह समस्या होती है और सरकार को खरीददारी बंद करनी पड़ती है जिसका नुकसान गरीब किसानों को होता है. पंजाब देश का अकेला राज्य है जहाँ सरकारी खरीद आढ़तिया के जरिये होती है और किसान के खेत का रिकॉर्ड नहीं लिया जाता. अब एफसीआई सतर्क हुई है और जमीन के रिकॉर्ड की बाध्यता करने जा रही है जिस पर आढतियों की लॉबी किसानों की असुविधा के नाम पर विरोध शुरू कर रही है.
भ्रष्टाचार का एक और उदाहरण देखें. खेती पर आयकर में छूट है. देश के कई जिलों में कुल उत्पादन से ज्यादा पैदावार दिखाकर भ्रष्ट अधिकारी और बड़े नेता काला धन सफ़ेद करते रहे हैं. क्या हर चुनाव में विकास की बात करने वाले राजनीतिक दल और देश के मतदाता विकास का कोढ़ बने भ्रष्टाचार नामक इस व्याधि को जड़ से ख़त्म करने को कभी मुख्य चुनावी मुद्दा बनायेंगें?
महामहिम, समझना होगा कि अपराध माने भूखे पेट रोटी चुराना या रोटी छिनने में किसी को मारना हीं नहीं होता. उसे भूखा किसने बनाया, उसकी कीमत पर रेस्टोरेंट से उगाही करने को कौन कर रहा है, दरअसल अपराधी वह है. संविधान की रक्षा तब तक नहीं हो सकेगी जबतक सही अपराधी परिभषित नहीं होगा और पहचाना नहीं जाएगा क्योंकि इनमें से अधिकांश संविधान में निष्ठा की शपथ लेकर हीं यह सब कुछ करते हैं.

समाप्त
एन के सिंह