कोरोना काल में राह दिखाया झारखंड ने कैचवर्ड- अफसर बिटिया। जनजातीय समुदाय की बहुलता वाले राज्यों के लिए राह, आदिम जनजाति को विशेष आरक्षण के लाभ का दिखने लगा असर। अभी तक चतुर्थ श्रेणी से ऊपर की सरकारी नौकरी में नहीं मिल पाता था स्थान
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कोरोना से फिलहाल जूझ रहे झारखंड ने आदिम जनजाति के लोगों का जीवन स्तर ऊंचा उठाने के मोर्चे पर बड़ी छलांग लगाई है। एक मायने में यह उन राज्यों के लिए भी राह भी दिखाने वाला है जहां जनजातीय आबादी की बहुलता है। झारखंड में विलुप्त हो रहे जनजातीय समुदायों के नौनिहाल पहले सरकारी नौकरियों में चतुर्थ श्रेणी के पदों से आगे नहीं बढ पाते थे, लेकिन हाल ही निकले झारखंड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) के परिणाम ने इस मिथक को तोड़ दिया। तेजी से विलुप्त हो रही कोरबा जनजाति की एक बिटिया ने प्रशासनिक पद पर नियुक्ति में कामयाबी पाई है। हालांकि इस श्रेणी के आरक्षण के तहत एक और पद योग्य अभ्यर्थी की कमी के कारण खाली रह गया, लेकिन कोरबा जनजाति की युवती चंचला ने आदिम जनजाति की पहली अफसर बिटिया बनकर सफलता का स्वाद ही नहीं चखा, बल्कि इस समुदाय से आने वाले युवक-युवतियों के लिए आदर्श बन गईं।
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वरीय आइएएस अधिकारी निधि खरे ने तैयार किया था प्रस्ताव
आदिम जनजाति समूहों के लिए सरकारी नौकरियों और प्रशासनिक पदों के दरवाजे खोलना आसान नहीं था। इसकी पहल झारखंड कैडर की भारतीय प्रशासनिक सेवा की वरीय अधिकारी निधि खरे ने की थी। फिलहाल वे केंद्रीय उपभोक्ता मामले विभाग में अतिरिक्त सचिव के पद पर तैनात हैं। राज्य में कार्मिक विभाग के प्रधान सचिव पद पर तैनाती के दौरान उन्होंने महसूस किया कि विलुप्त होने की कगार पर खड़े आदिम जनजाति समूहों को विशेष आरक्षण का प्रावधान कर आगे बढाया जा सकता है। उन्होंने अनुसूचित जनजाति को मिलने वाले 26 प्रतिशत आरक्षण में से दो प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान आदिम जनजाति के लिए किया। यह क्षैतिज आरक्षण था, यानी दो प्रतिशत पद अगर इस समूह से भरे नहीं जा सकें तो यह स्वतः अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित हो जाएगा।
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जानिए झारखंड की आदिम जनजातियों को
संविधान के प्रावधान के तहत झारखंड में 32 जनजातीय समुदाय सूचीबद्ध हैं। इसमें असुर, बिरहोर, बिरजिया, कोरबा, सबर (हिल खड़िया सहित), माल पहाड़िया, परहैया एवं सौरिया पहाड़िया की पहचान आदिम जनजाति (प्रिमिटिव ट्राइब ग्रुप) के रूप में की गई है। ये जनजातियां अन्य अनुसूचित जनजातियों की तुलना में सुदूर गांव, घने जंगलों, ऊंचे पहाड़ों पर रहती है। जीविका के लिए ये शिकार, झूम कृषि और वन उत्पादन पर निर्भर हैं। 2011 की जनगणना के मुताबिक झारखंड में इनकी आबादी 292359 है, जो अनुसूचित जनजाति की कुल आबादी का 3.38 प्रतिशत है। अनुसूचित जनजाति की 47.44 प्रतिशत साक्षरता दर के मुकाबले आदिम जनजाति समूहों की साक्षरता दर 30.94 प्रतिशत है।