अतिथि संपादक रजनीकांत पाठक की कलम से
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जब शहर में रहता हूँ तो इंडिया दिखता है और जब गांव में जाता हूँ तो भारत की बेबस आंखे पथराई नजर इंडिया की तरफ आशा भरी निगाहों से टुकुर-टुकुर देख रहा है। भारत से मेरा अभिप्राय मां से है।चीथड़ों में लिपटी, काली कलौटी भारत माँ की निगाह की दूरी नापना असंभव सा है। इन दिनों हम सब ने लॉक डाउन की अवधि में एक खास अभियान जिसमें जरूरतमंद के लिये बून्द रूपी ही सही लेकिन तत्कालीन मदद हेतु फौरी राहत के रुप में एक नागरिक के कर्तव्य की पूर्ति हेतु अभियान चलाया। इस अभियान का नाम “मैं बेगूसराय का बेटा हूँ” रखा गया ताकि लोगो से लोगो के लिये मदद इकट्ठा कर जरूरतमंद तक पहुँचाया जाय। अभियान का आज 52वां दिन था। यह सामूहिक यज्ञ जैसा अभियान है। दिन में चिंता बनी रहती है कि कल कैसे होगा और शाम होते-होते कोई न कोई दानदाता आगे आ जाता है। टीम के संयोजक पूर्व एमएलसी भूमिपाल जी अभियान क्रम में कुछ ऐसे जगह को चिन्हित किये जहां पहुँचना वाकई दुर्लभ था।आज अभियान के 52वां दिन में हमलोग गणिकाएं के बीच पहुँचे
इस चर्चा को रोक कर कुछ विशेष बातें:-
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क्या है गणिकाएं:-
भूमंडलीकरण के दौड़ में सब कुछ बदल गया। लगभग 1990 के पहले के दौड़ में जाइये तो पता चलता है कि मनोरंजन या मांगलिक कार्यो में नाच-गाना का कितना महत्व था। शादी-विवाह, मुंडन, उपनयन आदि मांगलिक कार्यो में गणिकाएं नृत्य करने आती थी।उनके जीवकोपार्जन का मुख्य जरिया भी यही था। भूमंडलीकरण के बाद डिजिटल की दुनियां और मनोरंजन के कई अन्य संसाधनों ने इनकी जड़ को खत्म किया। अब ये बदनाम गली हो चुके है जहाँ रात के अंधेरों में सरीफों की बस्ती से लोग पँहुचते है। कभी-कभी तो नाबालिक लड़की की जबरन तस्करी का भी खबर आते रहा है।
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समाज के शैक्षणिक विकास की कभी नजीर बनी थी ये गणिकाएं….
बात BHU की स्थापना काल की है। हमने कहीं पढ़ा भी था। जब पंडित मदनमोहन मालवीय ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना का श्रीगणेश 1904 में किया तब दरभंगा महाराज व काशी नरेश के अलावा भी बहुत लोगो ने दान दिया था। उस समय बनारस की गणिकाएं को यह बात मालूम हुआ। सभी ने गहने, जेवर निकाल कर दान देने की इक्षा प्रकट की और पंडित जी को खबर भिजवाई। वोट की राजनीति पर गौर करे तो पंचायत चुनाव में स्थानीय रुचि तो दिखती है लेकिन विधानसभा या लोकसभा चुनाव में इन पर नजर कम ही जाती है। सर्वांगीण विकास की नजर, इन पर भी पड़े ये कौन नही चाहेगा। हम जानते है कि हमारा अभियान काफी नही है इनके जरूरत को पूरा करने में, लेकिन हमें इस बात का गर्व है कि हमारी टीम वहाँ पहुँच रही है, जहां किसी का नजर अभी तक नही गया है। हम लॉक डाउन की इस कठिन अवधि में एक रेखा खींचने का प्रयास किये हैं, ताकि जब इस बात पर मुक्त कंठ से चर्चा होगी तब ऐसे असंख्य सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिये दिन के उजालो में- इनके लिये, इनके भविष्य के लिये, इनके जीवन में बुराइयों से अच्छाइयों की तरफ लाने में जुनूनी प्रयास की प्रेरणा मिलेगी और सब मिलजुल कर परिणामी प्रयास करेंगे।
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अंत में…
हमारी टीम एक और अभिनव प्रयास लेकर बहुत जल्द आपलोगो के बीच आएंगे. …