बिहार ब्रेकिंग
अयोध्या मामले पर जल्द फैसला आने के आसार बढ़ गए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने आज सभी पक्षों के वकीलों से कहा कि वह 18 अक्टूबर तक अपनी जिरह पूरी कर लें। ऐसे में यह माना जा रहा है कि नवंबर के महीने में सुप्रीम कोर्ट मामले पर फैसला दे देगा। 6 अगस्त से शुरू हुई इस ऐतिहासिक सुनवाई का आज 26वां दिन था। 16 दिन हिंदू पक्ष ने दलीलें रखी थीं। जबकि मुस्लिम पक्ष अब तक 10 दिन बोल चुका है। कल कोर्ट ने सभी पक्षों के वकीलों से यह बताने को कहा था कि वह दलील रखने के लिए कितना समय चाहते हैं। कोर्ट ने कहा था, “हम यह देखना चाहते हैं कि हमारे पास फैसला लिखने के लिए कितना समय होगा।”
फैसले के लिए 1 महीने का वक्त
कोर्ट का इशारा साफ तौर पर इस बात की तरफ था कि मामला सुन रही 5 जजों की बेंच के अध्यक्ष चीफ जस्टिस 17 नवंबर को रिटायर होने वाले हैं। ऐसे में तय व्यवस्था के तहत फैसला इससे पहले आना है। आज सभी पक्षों के वकीलों की जिरह में लगने वाले समय की जानकारी मिलने के बाद कोर्ट ने इसे 18 अक्टूबर तक पूरा करने के लिए कह दिया। ऐसे में उसके पास फैसला देने के लिए करीब 1 महीने का वक्त होगा।
धवन ने बताया शेड्यूल
कल कोर्ट की तरफ से सभी पक्षों के वकीलों से पूछे गए सवाल का जवाब सुन्नी वक्फ बोर्ड की तरफ से पेश वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने दिया। उन्होंने कहा, “मुस्लिम पक्ष अगले हफ्ते के अंत तक दलीलें रखना चाहता है। हमें रामलला विराजमान पक्ष से जानकारी मिली है कि वह 2 दिन तक हमारी दलीलों का जवाब देंगे। निर्मोही अखाड़े ने जवाब देने के लिए लगने वाले समय के बारे में अभी नहीं बताया है। दोनों का जवाब आने के बाद हम 1 से डेढ़ दिन तक दोबारा उनकी बातों पर जवाब देंगे।”
अतिरिक्त समय भी हो सकती है सुनवाई
वकीलों की तरफ से रखे गए इस शेड्यूल पर जजों ने आपस में चर्चा की। फिर कहा, “हमें लगता है कि 18 अक्टूबर तक बहस और जवाब की प्रक्रिया पूरी हो सकती है। हम चाहते हैं कि सभी मिलकर इस बात को कोशिश करें कि इस सीमा में बहस खत्म हो जाए। ताकि कोर्ट को फैसले के लिए पर्याप्त समय मिल सके। अगर जरूरत पड़ी तो हम रोजाना एक घंटा अतिरिक्त सुनवाई को तैयार हैं। सुनवाई शनिवार को भी की जा सकती है।”
मध्यस्थता हो, पर सुनवाई नहीं रुकेगी
कोर्ट ने मामले की मध्यस्थता के लिए बनाई गई कमिटी की तरफ से भेजी गई जानकारी पर भी बात की। कहा, “हमें जानकारी दी गई है कि कुछ पक्षकार मध्यस्थता प्रक्रिया जारी रखना चाहते हैं। अगर कोई पक्ष कोर्ट से बाहर हल निकालने की कोशिश करना चाहता है तो प्रयास कर सकता है। लेकिन मामले की कोर्ट में चल रही सुनवाई काफी आगे बढ़ चुकी है। इसे रोका नहीं जाएगा। अगर मध्यस्थता होती है तो इसे गोपनीय रखा जाए। प्रक्रिया से जो भी हासिल हुआ हो उसकी रिपोर्ट कोर्ट को दी जाए।”