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भारत शनिवार को अंतरिक्ष विज्ञान में इतिहास रचने के करीब था… चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडर ‘विक्रम’ के उतरने की सारी प्रक्रिया भी सामान्य रूप से चल रही थी। कुल 13 मिनट 48 सेकंड तक सब कुछ बिल्कुल सटीक और सही सलामत चला। नियंत्रण कक्ष में वैज्ञानिक उत्साहित थे लेकिन आखिरी के डेढ़ मिनट पहले जब लैंडर विक्रम चंद्रमा की सतह से 2.1 किलोमीटर ऊपर था तभी लगभग 1:55 बजे उसका इसरो के नियंत्रण कक्ष से संपर्क टूट गया। ऐसा नहीं कि केवल भारत को ही सॉफ्ट लैंडिंग कराने में मायूसी हाथ लगी है। इससे पहले इन देशों के प्रयास भी विफल रहे हैं। हालांकि इसरो अपने मिशन में नाकामयाब हो गया अभी ऐसी कोई जानकारी नहीं है क्योंकि लैंडर से संपर्क टूटा है केवल। लैंडर चांद की सतह पर सफलतापूर्वक लैंड की या नहीं इसकी जानकारी पूर्ण रूप से डेटा इकट्ठा करने के बाद ही पता चल सकेगी।
अभी तक चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग के कुल 38 कोशिशें की गई हैं। इनमें से महज 52 फीसदी प्रयास ही सफल रहे हैं। चंद्रमा पर दुनिया के केवल छह देशों या एजेंसियों ने अपने यान भेजे हैं लेकिन कामयाबी केवल तीन को मिल पाई है। चंद्रमा की सतह पर उतरने की पहली कोशिश साल 1959 में अमेरिका और सोवियत रूस द्वारा की गई थी। साल 1958 में ही अगस्त से दिसंबर 1968 के बीच दोनों देशों ने आपधापी में कुल सात लैंडर भेजे लेकिन इनमें से कोई भी सॉफ्ट लैंडिंग में सफल नहीं हो सका था। अमेरिका ने चार पायनियर ऑर्बिटर जबकि सोवियन संघ की ओर से तीन लूनर इंपैक्ट को भेजा गया था। सोवियत संघ ने 1959 से 1976 के बीच लूना प्रोग्राम के तहत कुल 13 कोशिशें की थी।
इजराइल ने इस साल 22 फरवरी को अपना मून मिशन लॉन्च किया था लेकिन उसे भी मायूसी ही हाथ लगी थी। इजराइल की ओर से यह कोशिश निजी कंपनी स्पेसएल की ओर से की गई थी। इजराइल का यान बेरेशीट चंद्रमा की सतह पर उतरने की कोशिश में क्रैश हो गया था। बताया जाता है कि यान के इंजन में तकनीकी खामी आ गई थी लेकिन ऐन वक्त पर उसका ब्रेकिंग सिस्टम फेल हो गया था। आंकड़े बताते हैं कि यान बेरेशीट चंद्रमा की सतह से जब 10 किलोमीटर दूर था, तभी धरती से उसका संपर्क टूट गया था। चंद्रमा की सतह पर उसकी क्रैश लैंडिंग हुई थी।
चंद्रयान-2 चंद्रमा पर दुनिया का 110 वां और इस दशक का 11वां अंतरिक्ष अभियान है। 109 में से 90 अभियानों को 1958 और 1976 के बीच चांद पर भेजा गया। उसके बाद चांद पर अभियानों को भेजने का सिलसिला सुस्त पड़ गया। 20वीं सदी नौवें दशक में चंद्रमा पर अभियान धीरे-धीरे फिर से शुरू हो गए और 2008 में चंद्रयान -1 द्वारा चंद्रमा पर की गई पानी की खोज ने दुनिया का ध्यान चंद्रमा की ओर फिर आकर्षित किया। चंद्रयान -2 चंद्रमा की सतह पर लैंडिंग का भारत का पहला प्रयास है। भारत के पड़ोसी चीन का पहला मून लैंडर चांग ई-3 था, जिसे चीन की अंतरिक्ष एजेंसी ने 1 दिसंबर 2013 को सफलतापूर्वक लांच किया था। इसके बाद चीन ने फिर चांग ई-4 की सफल लॉन्चिंग के जरिए चांद के सुदूर हिस्से में उतारने वाला पहला देश बना था।