बिहार ब्रेकिंग-कुणाल कुमार-सुपौल
सरकार स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुधार को लेकर भले ही दंभ भर ले पर जमीनी सच्चाई ये है की मरीज की रक्षा करने वाले डॉक्टर ही मरीज के जान के दुश्मन बनने को तैयार। इसके पीछे रुपए की उगाही प्रमुख कारण है।
लोग कहते हैं डॉक्टर धरती के भगवान हैं, सच भी है कि अगर डॉक्टर ना हो तो कितने लोग इलाज के अभाव में समय से पहले प्राण त्याग देंगे, लेकिन इसके लिए सच्चे डॉक्टर का होना बेहद ही जरूरी है। डॉक्टर और मरीज का रिश्ता इलाज के दौरान भगवान और भक्त का होना चाहिये पर आधुनिकता के इस दौर में जब सारे लोग पैसे के पीछे भाग रहे हैं क्या ऐसे समय में डॉक्टर की भूमिका भी उसी ओर जा रही है या वे अपने पेशे के साथ ईमानदारी बरत पा रहे हैं ये सबसे बड़ा प्रश्न है। अभी ये सवाल इसलिए उठ रहा है कि हाल में मुुुजफ्फरपुर में कई नौनिहालों की जान चली गयी है और लोग डॉक्टर को ही संदेह की नजर से देखने लगे है। जाहिर है जिस परिवार का चिराग बुझेगा उसे ये हक तो होना ही चाहिये।
फिलहाल सदर अस्पताल से जुड़ा एक मामला प्रकाश में आया है जो कथित डॉक्टर की पोल खोल रही है जिसके लापरवाही के कारण एक नवजात की मौत हो गयी है। हालंकि ये मामला थाने तक नहीं पहुंच पायी लेकिन ये घटना लोगों में चर्चा का विषय बन गया है कि क्या इसी तरह स्वास्थ्य व्यवस्था चलती रहेगी और लोगों की जान जाती रहेगी। दरअसल 22 तारीख शनिवार के दिन सदर बाजार के एक निजी क्लीनिक में एक नवजात की मौत हो गयी। बताया जाता है कि उस दौरान हो हँगामा भी हुआ पर रुपयो की चमक के आगे मामला दब गया। परिजन का आरोप है कि गुरुवार को सदर अस्पताल में नवजात को भर्ती कराया गया था जहां अस्पताल में पदस्थापित डॉक्टर हरिशंकर ने प्राथमिक उपचार के बाद परिजनों से कहा की बच्चे की हालत खराब है बच्चे को उसके निजी क्लीनिक में भर्ती करना पड़ेगा। खर्च भी बता दिया कि करीब 60 से 70 हजार रुपया इसमे खर्चा पड़ेगा। परिजन बच्चे की सलामती चाहते थे लिहाजा बच्चे को एक निजी क्लीनिक में भर्ती कर दिया। डॉक्टर के अनुसार करीब 80 हजार रुपया भी चुकता कर दिया लेकिन डॉक्टर के लाख कोशिश के बावजूद बच्चे की हालत ठीक नहीं हो सकी और शनिवार की शाम बच्चे की निजी क्लीनिक में मौत हो गयी।
जानकारी मिली है कि इसके बाद क्लीनिक में तोड़ फोड़ और हँगामा भी हुआ। बात बढ़ते देख कुछ गणमान्य लोगों के हस्तक्षेप से मामला को शांत कराया गया और लेन देन कर मामला को समाप्त किया गया। ये मामला भले ही शांत हो गया पर कई सवाल अब भी उठ रहे है। उस क्लीनिक में भर्ती तीन अन्य मरीज के परिजनों का स्पष्ट कहना था कि वे सदर अस्पताल से डॉक्टर और एंबुलेंस चालक के कहने पर यहां मरीज को भर्ती कराया है। जाहिर सी बात है सदर अस्पताल जैसे अस्पतालों में जब मरीज का इलाज नहीं होता है तो उसे डीएम सीएच सरीखे बड़े अस्पतालों में भेजा जाता है लेकिन गिद्ध की तरह कुछ डॉक्टर और एंबुलेंस चालक अवैध उगाही के लिए मरीज को बाहर ले जाने के बजाय ऐसे ऐसे निजी क्लीनिक में भर्ती करवा देते हैं जहां मरीज के जान की तो कोई उम्मीद ही नहीं रहती बल्कि जमीन जायदाद बेचकर मोटा रकम भी देना पड़ता है।
ये सिलसिला आज भी बदस्तूर कायम है जिसपर किसी के द्बारा अंकुश नहीं लगाया जाता और इसका शिकार आम भोले भले मरीज बन रहे हैं। हालाँकि कुछ ही ऐसे डॉक्टर हैं जिसे मरीज से ज़्यादा प्यार पैसे से होता है ऐसे में धरती के भगवान कहे जाने वाले तमाम अच्छे डॉक्टर भी बदनाम हो जाते हैं। जबकि अधिकांश डॉक्टर इस तरह के नहीं होते ऐसे में डॉक्टर के संगठन को चाहिये की वो ऐसे डॉक्टर को चिन्हित करे जो इस पेशे को गंदे कर रहे है उसे संगठन से निकाल कर उसे दंडित करे नहीं तो आने वाले समय .में अच्छे डॉक्टर भी बदनाम हो जायेंगे। इस बाबत संबंधित डॉक्टर हरिशंकर ने आरोप को खारिज किया है, वहीं सीएस डॉ घनश्याम झा ने कहा कि इस तरह की शिकायत उसके पास अभी तक नहीं मिली है।