बिहार ब्रेकिंग-आनंद कौशल, वरिष्ठ टीवी पत्रकार, मीडिया एवं पॉलिटिकल स्ट्रैटजिस्ट
इस बार संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में एनडीए को फिर से पूर्ण बहुमत मिलने की संभावना जतायी जा रही है। देश के तमाम एक्जिट पोल के मुताबिक भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियों का शानदार प्रदर्शन उन्हें सत्ता के करीब ला चुकी है और भाजपा के नेतृत्व में एक बार फिर से मोदी सरकार बनने की प्रबल संभावना है। लगभग सभी एग्जिट पोल में भाजपा और उसके सहयोगी यानि एनडीए को 300 के करीब सीटें मिलने का अनुमान लगाया जा रहा है वहीं, कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों को 150 से नीचे सीटें मिलती नजर आ रही हैं।
तमाम एक्जिट पोल में एनडीए को स्पष्ट बहुमत
एक्जिट पोल पर भरोसा ना करने की कोई वज़हें नहीं हैं क्योंकि सभी पूर्वानुमान एनडीए को ही सत्ता के करीब नहीं बल्कि उससे कहीं आगे बता रहा है। रिपब्लिक-सी वोटर के अनुसार, एनडीए को 287 सीटें, यूपीए को 128 सीट और अन्य को 127 सीटें मिलने का अनुमान है। इधर, एबीपी नील्सन के एग्जिट पोल में भी एनडीए को 287, कांग्रेस नीत यूपीए को 127 और अन्य को 148 सीटें मिलने का दावा किया जा रहा है। इंडिया टीवी एग्जिट पोल में एनडीए को 300 सीट जबकि यूपीए को 120 सीटें और अन्य को 122 सीटें मिलने का अनुमान है। आजतक के एग्जिट पोल में एनडीए को 339-365 सीटें, यूपीए को 77-107 सीटें और अन्य को 69-95 सीटें मिलती नजर आ रही हैं। न्यूज 24 चाणक्या के एग्जिट पोल में एनडीए को 350 सीटें, यूपीए को 95 सीटें और अन्य को 97 सीटें मिलने का अनुमान जताया जा रहा है।सबसे बड़ी बात ये है कि भाजपा का प्रदर्शन देशभर में बेहतर होने की उम्मीद जतायी जा रही है, देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में भाजपा भले ही पिछली बार की तरह 73 सीटें ना हासिल कर पा रही हो लेकिन सपा और बसपा समेत आरएलडी के मौजूदा गठबंधन के बावजूद 80 में से 49 सीटें हासिल कर सकती है। अगर प्रमुख राज्यों की बात करें तो छत्तीसगढ़ में 11 लोकसभा सीटों में से कम से कम 6 सीटें, मध्यप्रदेश में 29 में से 24 सीटें, बिहार में 40 में से 30 सीटें, महाराष्ट्र में 48 में से 36 सीटें, हरियाणा में 10 में से 8 सीटें एनडीए हासिल कर सकता है। इसके साथ ही राजस्थान में भी 25 में से 22 सीटें, कर्नाटक में 28 में से 19 सीटें, पश्चिम बंगाल में 42 में से 14 सीटें, उड़ीसा में 10 सीटें, असम में 9 सीटें जबकि दिल्ली में 7 में से 6 सीटें एनडीए गठबंधन के खाते में आ सकती हैं। सबसे अच्छा प्रदर्शन भाजपा अपने पुराने गढ़ गुजरात में कर सकती है जहां उसे कम से कम 23 सीटें मिलतीं दिख रही हैं, एनडीए को तेलंगाना में 1 सीट, पंजाब में 4 सीट, झारखंड में 8 सीट और तमिलनाडू में एआईएडीएमके के साथ भाजपा को 11 सीटें हासिल हो सकती हैं। हालांकि लाख कोशिशों के बाद भी भाजपा और उनकी सहयोगी को आंध्र प्रदेश में कोई सफलता मिलती नहीं दिख रही है और पार्टी को यहां एक भी सीट ना मिलने की संभावना है जबकि केरल में एक सीट जीतकर पार्टी अपना रिकार्ड बेहतर कर सकती है। इसके साथ ही बांकि राज्यों में भी एनडीए गठबंधन का प्रदर्शन बेहतर रहने की उम्मीद जतायी जा रही है।
एनडीए एकता बनाम यूपीए में अंतर्विरोध
अब सवाल यह उठता है कि आखिर क्या कारण है कि एनडीए को दूसरी बार विजयश्री हासिल हो रही है, या मोदी लहर वास्तव में क्या अभी भी बरक़रार है। अगर इन सवालों की गहन समीक्षा करें तो पाएंगे कि एनडीए को एक्जिट पोलों में मिल रही जीत के पीछे कई कारण हैं और मोदी लहर से ज्यादा इन स्वाभाविक मुद्दों के चलते ही वन्स मोर की आवाज़ सुनायी दे रही है। दरअसल भाजपा के गठबंधन दलों के अंदर आपसी एकता इस जीत के बड़े कारण हैं। आपको याद होगा जब भाजपा ने जदयू के साथ 17-17-6 सीटों पर अपने अपने उम्मीदवार उतारने का एलान किया था, उस वक्त बिहार में महागठबंधन में कौन सी पार्टी साथ होगी इसपर भी फैसला नहीं हो पाया था, वहीं, भाजपा ने महाराष्ट्र में अपने पुराने सहयोगी शिवसेना, तमिलनाडू में स्वाभाविक साझेदार एआईएडीएमके, पंजाब में अकाली दल समेत सभी राज्यों में पुराने सहयोगियों के साथ रिश्ते बेहतर कर लिए थे। पिछले चुनाव में बिहार में भाजपा को कुल 29.86 प्रतिशत वोट मिले थे, वहीं, जदयू को 16.04 प्रतिशत वोट मिले थे इस लिहाज से अकेले भाजपा जदयू के वोट शेयर 45 फीसदी से ज्यादा हो जाते हैं इसमें से लोजपा के वोट शेयर जोड़ देने पर चुनाव परिणाम एक्जिट पोल के अनुमान की तरफ ही इशारा कर रहे हैं। दूसरी ओर राजद और कांग्रेस की बात करें तो बिहार में पिछली बार 20.46 प्रतिशत वोट शेयर के साथ राजद और 8.56 प्रतिशत वोट शेयर के साथ कांग्रेस के कुल वोट शेयर 29 प्रतिशत के आसपास आते हैं। इसमें इस बार जीतनराम मांझी के नेतृत्व वाली हम और उपेंद्र कुशवाहा के नेतृत्व वाली रालोसपा और नये सदस्य मुकेश सहनी के नेतृत्व वाली वीआईपी को एक साथ जोड़ देने पर भी वो एनडीए के मुकाबले कम ही दिखाई दे रहे हैं। जिस तरह से महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ एक बार फिर साथ जाने से भाजपा को सफलता मिलती दिख रही है वहीं पूर्वोत्तर, दक्षिण, समेत संपूर्ण देश में मजबूत और भरोसेमंद गठबंधन की वज़ह से चुनाव में एनडीए ने अपना दबदबा कायम किया । इधर, कांग्रेस उत्तर प्रदेश में अलग-थलग पड़ गयी तो वहीं बिहार में भी उसे राजद ने बिल्कुल अछूत बनाकर रख दिया। जहां भाजपा के साथ उसकी 21 सहयोगी पार्टियां साथ खड़ी नज़र आयीं वहीं कांग्रेस ने अति महत्वाकांक्षा में अपने पुराने सहयोगियों को दरकिनार कर दिया। महागठबंधन की एकता में दरार का सबसे बड़ा उदाहरण बना बिहार के बेगूसराय में सीपीआई उम्मीदवार का अकेले चुनाव लड़ना। वहीं गठबंधन में कई पुराने कांग्रेसी और राजद नेताओं के विरोध और उनकी उम्मीदवारी ने एनडीए को वॉक ओवर दे दिया।
आतंकवाद के खिलाफ़ आक्रामक अंदाज एवं राष्ट्रवाद सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा
दूसरा सबसे अहम मुद्दा राष्ट्रवाद एवं आतंकवाद के खिलाफ़ आक्रामक अंदाज रहा, जिसने भारतवर्ष के लोगों में ये विश्वास जगाने का काम किया कि देश की बागडोर अब सुरक्षित हाथों में है और आतंकवाद के खिलाफ़ अब हम लोग चुप बैठने वाले नहीं हैं और पाकिस्तान या उनके जैसे किसी देश को किसी भी हिमाकत के लिए माकूल जवाब देने में हमारा नेतृत्व सक्षम है। इसमें तात्कालिक कारण बना पाकिस्तान के खिलाफ़ हुई एयर स्ट्राईक, सर्जिकल स्ट्राईक और हमारे वायु सेना कमांडर की सकुशल स्वदेश वापसी । इसे एनडीए ने अपने तमाम चुनावी सभाओं में गाहे-बगाहे इस्तेमाल किया और जनमानस के दिलों में देशभक्ति की लौ जलाई । बिहार में भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने तमाम चुनावी भाषणों में नरेंद्र मोदी और आतंकवाद के खिलाफ़ कार्रवाईयों की प्रशंसा करते नज़र आए । कांग्रेस और उनकी सहयोगी पार्टियों के पास ज़मीनी मुद्दों का अभाव दिखा और संविधान तथा आरक्षण बचाने को अपना चुनावी मुद्दा बताया। कांग्रेस की न्याय योजना को उनकी सहयोगी पार्टियों ने ही भाव नहीं दिया और कांग्रेस की इस महत्वाकांक्षी योजना को गरीबी हटाओ के नारे देने वाली कांग्रेस के पुराने नारे से जोड़कर ही देखा जाने लगा । किसानों के मुद्दे, शिक्षा, रोज़गार, उद्योग, स्वास्थ्य और देश के विकास के मुद्दे बस घोषणा पत्र तक सिमटते नज़र आए। तेजस्वी यादव बिहार तक ही सीमित रहे और बिहार में भी नीतीश के खिलाफ़ व्यक्तिगत हमले ही करते नज़र आए। विपक्ष के पास अच्छे वक्ता और ज़मीनी नेताओं का अभाव दिखा जो जनता की नब्ज पढ़ पाते। आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद और कांग्रेस के कई पुराने नेताओं की कमी साफ नज़र आयी और चुनावी कार्यक्रमों में जनता उनके भाषणों से प्रभावित नहीं दिखी।
पहली बार डेढ़ करोड़ युवाओं ने किया वोट जिनकी उम्र 18-19 साल
एक महत्वपूर्ण पहलू युवा वोटरों का मोदी के प्रति रूझान रहा । इस बार तकरीबन 1 करोड़ 50 लाख वोटरों ने पहली बार वोट किया यानी 18 से 19 साल के युवा जिन्होंने पहली बार मतदान किया वो मोदी मैजिक से अछूते नहीं रहे । एक प्रचलित धारणा है कि जब नवयुवक 18 से 20 साल की उम्र के होते हैं तो देश के प्रति उनकी देशभक्ति उनकी वाणी में, लेखनी में, विचारों में और प्रयोग में नज़र आने लगती है लेकिन यही युवा जब अपनी उच्च शिक्षा हासिल कर लेते हैं और कई विचारों को खुद में आत्मसात करते हैं तो ये वामपंथ की राह पर निकल पड़ते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करिश्माई व्यक्तित्व और उनके ओजपूर्ण संवाद की वज़ह से ऐसे युवा जो पहली बार वोटर बने उन्होंने मोदी को दोबारा प्रधानमंत्री बनाने का मन बना लिया था। अनुमान है कि डेढ़ करोड़ युवाओं ने दिल खोलकर मतदान किया और भाजपा के पक्ष में या उनके गठबंधन के पक्ष में मतदान किया । इसके साथ ही बड़ी संख्या में युवा आबादी ने भी नरेंद्र मोदी को अपना समर्थन दिया और विपक्ष के दो करोड़ रोज़गार हर साल देने के मुद्दे को हवा देने पर भी उनपर भरोसा नहीं किया। ऐसे युवाओं में बड़ी संख्या में नौकरी पेशा लोग भी शामिल रहे।
आधी आबादी का मिला पूरा समर्थन
आधी आबादी का पूरा समर्थन एनडीए गठबंधन को मिलने का अनुमान जताया जा रहा है। खास कर बिहार में महिलाओं ने दिल खोलकर एनडीए गठबंधन के उम्मीदवारों पर बटन दबाया। महिलाओं में ना किसी जाति धर्म का बंधन दिखा ना ही उम्र के पड़ाव का असर। सभी वर्ग की महिलाओं ने मोदी के नाम पर और बिहार में मोदी और नीतीश के नाम पर जमकर मतदान किया। बिहार में महिलाओं के समर्थन की सबसे बड़ी वज़ह रही शराबबंदी। विपक्ष दीवार पर लिखी लिखावट को पढ़ नहीं पाया औऱ उसने अपनी घोषणाओं में शराबबंदी को लेकर नीतीश पर निशाना साधने से गुरेज नहीं किया। शराबबंदी के चलते बिहार में महिलाओं की पहली पसंद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार रहे, इसके साथ ही महिलाओं को सभी सरकारी सेवाओं में 35 प्रतिशत आरक्षण देने के निर्णय का भी असर देखने को मिला। इसके अलावा उज्ज्वला योजना, बिहार के मुख्यमंत्री की कन्या उत्थान योजना, जीविका, पोशाक योजना, साइकिल योजना समेत महिलाओं के लिए किए गए प्रयासों के चलते बिहार में आधी आबादी द्वारा बंपर वोटिंग के अनुमान हैं। हालांकि देशभर में महिलाओं का कितना समर्थन मिला इसपर संशय भी है लेकिन बिहार में एनडीए को नीतीश के विज़न की वज़ह से ही आधी आबादी का पूरा समर्थन मिल पाया है।
मोदी मैजिक और मीडिया
मोदी मैजिक में मीडिया का रोल भी अहम रहा और प्रधानमंत्री के लगातार भाषणों और उनके कार्यक्रमों की जबरदस्त कवरेज, विज्ञापन की बेहतर स्ट्रैटजी और जबरदस्त मीडिया प्रबंधन की वज़ह से मोदी मैजिक सर चढ़कर बोलने लगा। देश के तमाम न्यूज़ चैनलों पर रोज़ाना एनडीए की रैलियों और उनके नेताओं के भाषणों को लाइव दिखाया गया, इसके साथ ही चुनावी कैंपेन में भी मीडिया की भूमिका का लाभ एनडीए को मिला। मोटे अनुमान के मुताबिक भाजपा ने गूगल, फेसबुक समेत अन्य सोशल मीडिया पर 20 करोड़ रूपये से ज्यादा खर्च किया इसमें से केवल गूगल पर 17 करोड़ रूपये खर्च किए गए, जबकि कांग्रेस ने केवल 2 करोड़ रूपये से कुछ ज्यादा खर्च किए। यानि भाजपा ने कांग्रेस की तुलना में 200 गुणा ज्यादा खर्च किए। वहीं चुनाव शुरू होने के पहले तक मोदी सरकार ने पिछले पांच सालों में विज्ञापन पर तकरीबन 5245 करोड़ रूपये खर्च किए जबकि यूपीए के दस सालों में केवल 5000 करोड़ रूपये के आसपास विज्ञापन का बजट रहा। कुल मिलाकर कहें तो अपने कामों को जनता तक पहुंचाने के लिए मोदी सरकार ने प्रिंट, इलैक्ट्रोनिक और डिजिटल तीनों माध्यमों का जबरदस्त इस्तेमाल किया। सोशल मीडिया पर दिए गए प्रचार को जोड़ दें तो ये आंकड़ा और बढ़ सकता है।
अल्पसंख्यकों ने भी एनडीए को किया वोट
तमाम एक्जिट पोल में बिहार और उत्तर प्रदेश समेत कई हिंदी पट्टी में एनडीए का प्रदर्शन शानदार दिख रहा है और इसमें कोई दो राय नहीं कि इस बार हिंदुओं के वोट की तुलना में मुस्लिमों के वोट की चाहत भाजपा को कम दिखी। दूसरी ओर कांग्रेस और उनके सहयोगी दलों को मुस्लिम तुष्टीकरण का खामियाज़ा ही उठाना पड़ा क्योंकि अनुमान है कि देशभर में अलग-अलग राज्यों में मुस्लिम वोटरों ने एनडीए के पक्ष में भी मतदान किया। बिहार में भी अनुमान है कि नीतीश की नियत पर मुसलमानों ने बड़ा भरोसा जताया है और देश भर में बिहार में सबसे ज्यादा मुस्लिमों के लिए किए गए विकास कार्यों को मुख्यमंत्री अल्पसंख्यकों तक अपने संवाद के माध्यम से पहुंचाने में कामयाब रहे। अगर किशनगंज, अररिया, मधुबनी, दरभंगा, सीतामढ़ी और मधेपुरा समेत कई अन्य सीटों पर एनडीए जीतती है तो इसका एक बड़ा कारण यही होगा। कुल मिलाकर कहें तो बिहार में एमवाई समीकरण को भी मोदी मैजिक और नीतीश के विज़न ने ध्वस्त करने का काम किया और अनुमान है कि दरभंगा में चुनावी कार्यक्रम में नीतीश के वंदे मातरम ना कहने का फल्सफा यही कुछ इशारा कर रहा है। इसके साथ ही दलित-महादलित, पिछड़ा-अतिपिछड़ा, अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति समेत महिलाओं, युवाओं एवं अल्पसंख्यकों के लिए राज्य सरकार के किए गए कामों को भी नीतीश अपने संवाद के माध्यम से पहुंचाने में कामयाब रहे। अगर बिहार में एनडीए 25 से ज्यादा सीटें जीतने में कामयाब होती है तो इसमें सबसे बड़ा योगदान नीतीश के विज़न का ही होगा। इसके साथ ही राम विलास पासवान के नेतृत्व वाली लोजपा के साथ पासवान वोटरों के सौ प्रतिशत समर्थन ने भी एनडीए की राहें बिहार में आसान कर दीं। अब ये देखना दिलचस्प होगा कि लोजपा छह में से कितनी सीटें जीत पाएंगी।
बयान बहादुरों ने लुटिया डुबोई
इन तमाम पहलुओं के साथ ही कांग्रेस के बयान बहादुरों के बेतुके बयानों ने भी जनता को कांग्रेस से दूर कर दिया। इसके साथ ही गठबंधन दलों में प्रधानमंत्री पद के लिए नेता के नाम पर सहमति ना बन पाने के चलते भी जनता के सामने अनिर्णय की स्थिति रही जिसका नतीजा एक्जिट पोल में देखने को मिल रहा है। वहीं एनडीए की तरफ से मोदी के नाम पर बिना किसी अवरोध के चलते जनता से स्पष्ट संवाद कायम हुआ और लोगों को लगा कि पांच साल और देकर देखने में कोई बुराई नहीं है।
एक्जिट पोल के मुताबिक एनडीए इस बार सत्ता में बहुमत के साथ आ रही है और इस दौरान गठबंधन दलों के प्रदर्शन को भी आंका जाएगा लेकिन कांग्रेस और उनके सहयोगियों को मिलने वाली सीटों को देखकर भले ही ऐसा लगे कि वो सत्ता के जादुई आंकड़े से दूर हैं लेकिन एनडीए के स्वाभाविक सहयोगी भी खेल बिगाड़ सकते हैं। राजनीतिक जानकारों की मानें तो एक्जिट पोलों में जिस तरह से एनडीए को तीन सौ के पार दिखाया जा रहा है वो सही नहीं है लेकिन एनडीए 272 के जादुई आंकड़े के आसपास होगी। बिहार में भी एनडीए गठबंधन को पच्चीस से सत्ताईस सीटें मिलने के आसार हैं और कांग्रेस का प्रदर्शन भी बेहतर रहने की उम्मीद है, जिस तरह से कांग्रेस ने कई राज्यों में भाजपा को कड़ी चुनौती दी है उससे ये साफ है कि अगर इस बार मोदी सरकार बनती है तो विपक्ष की भूमिका भी ज़ोरदार रहने वाली है। तमाम चुनावी सर्वेक्षणों में एनडीए की जीत के बाद अब मोदी का सामना नए और मजबूत मोदी से होगा क्योंकि पहली बार वोट देने वाले नव युवकों को इस बार मोदी से बड़ी आशाएं होंगी।