मघुबनी: राजद के पूर्व वरिष्ठ नेता सह पूर्व केंद्रीय राज्यमंत्री व बसपा के प्रत्याशी मो. अली अशरफ फातमी के नामांकन वापस लेने से मधुबनी का चुनावी दंगल काफी रोमांचक बन गया है। उनके मैदान से हटते ही एनडीए व महागठबंधन के प्रत्याशियों के पूर्वानुमान का गणित उल्टा पड़ गया है। दोनों दलों के प्रत्याशी एम समीकरण के बिखराव को अपनी जीत समझ रहे थे। लेकिन मैदान से मो. फातमी के हट जाने के बाद “एम” फैक्टर ने दोनों प्रत्याशियों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। वहीं, कांग्रेस से बगावत कर चुनावी समर में अपनी पहचान बचाने के लिए मैदान में उतरे पूर्व केंद्रीय राज्यमंत्री डॉ. शकील अहमद ने राहत की सांस ली है। उन्हें लगता है कि जिले के सबसे बड़े वोट बैंक मुस्लिम मतदाता (लगभग चार लाख) के वो एकमात्र प्रतिनिधि व चेहरा बच गए हैं, क्योंकि वर्ष 1990 से पूर्व कांग्रेस व उसके बाद राजद मुस्लिम वोट बैंक को अपना समझता रहा है। राजनीति के जानकारों की मानें, तो एम समीकरण के किले को अभी भी एनडीए भेदने में सफल नहीं हुआ है। साथी ही, महागठबंधन की ओर से सीट वीआईपी को मिल जाने की वजह से मुस्लिम मतदाताओं के दल बदलने की आशंका जताई जा रही थी। इसी बिखराव को समेटने के उद्देश्य से दो पूर्व केंद्रीय राज्यमंत्री ने अपनी वर्षों पुरानी पार्टी से बगावती बिगुल फूंकते हुए मधुबनी सीट पर अपनी दावेदारी पेश की थी। हालांकि, एम समीकरण की ओर से अभी भी ठोस निर्णय नहीं लिया गया है कि आखिर वो अपने समुदाय की ओर जाएंगे या पूर्व की तरह राजद समर्थक के रूप में रहेंगे। परिणाम तो 23 मई को ही लोगों के सामने आएगा।
मुद्दों से ज्यादा जातीय गोलबंदी पर सबका जोर
डॉ. अशोक यादव, भाजपा :केवटी से तीन बार विधायक रहे। पिता हुकुमदेव यादव तीन बार सांसद रह चुके हैं। पूरा परिवार राजनीतिक रहा है।
ई. बद्री पूर्वे, वीआईपी :मूलरूप से व्यवसाई हैं। चाचा कामेश्वर पूर्वे राजनीति से जुड़े हुए थे। ई. पूर्वे दरभंगा नगर निगम से पार्षद का चुनाव लड़ चुके हैं।
डॉ. शकील, निर्दलीय :तीन बार विधानसभा पहुंचे। वहीं, मधुबनी लोस क्षेत्र से दो बार सांसद रह चुके हैं। यूपीए सरकार में केंद्रीय राज्य मंत्री रह चुके हैं।
वैश्य वोटरों पर नजर
लोस क्षेत्र में वैश्य मतदाताओं की संख्या मुस्लिम, ब्राह्मण व यादव के बाद आता है। विधानसभा व विधान परिषद की दोनों सीटों पर वैश्य समुदाय काबिज है। यही वजह है कि सभी प्रत्याशी उन्हें अपने पाले में करने का प्रयास कर रहे हैं। एनडीए प्रत्याशी डॉ. अशोक यादव के सामने पिता की विरासत को बचाने की जिम्मेदारी है। वहीं, महागठबंधन प्रत्याशी नई कहानी लिखने जद्दोजहद कर रहे हैं। शकील अपनी ताकत दिखाने में लगे हैं।
वाई समीकरण में भी बिखराव
इस सीट पर एम समीकरण के बाद वाई समीकरण की बात करते हैं। सीधे शब्दों में कहे तो वाई मतदाता के सामने भी काफी कनफ्यूजन है। एक ओर उनकी बिरादरी के निवर्तमान सांसद हुकुमदेव यादव के पुत्र डॉ. अशोक यादव हैं तो दूसरी ओर उनके सबसे बड़े नेता की ओर से गठित महागठबंधन के प्रत्याशी ई. बद्री पूर्वे उर्फ राजू पूर्वे का होना। एक ओर एनडीए ने उनके बिरादरी को मैदान में उतार दिया है। वहीं, दूसरी ओर नए चेहरे को महागठबंधन के घटक दल ने उतार कर “वाई” बिरादरी की भी मुश्किलें बढ़ा दी हैं।
यहां भी स्थानीय व बाहरी का मुद्दा
एक ओर प्रत्याशी मतदाताओं को रिझाने की नई-नई तरकीब ला रहे है। बावजूद मतदाता की चुप्पी नहीं टूट रही है। इस कारण से क्षेत्र का चुनावी दंगल हर पल नई करवट ले रहा है। मतदाता खुलकर तो नहीं, पर इतना अवश्य जानना चाहते हैं कि क्या राष्ट्रीय दलों के कर्ताधर्ता को जिले में ऐसा को भी प्रत्याशी नहीं दिखा, जो उन्हें पड़ोस के जिले से उम्मीदवार लाना पड़ा। मतदाताओं ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि तीनों प्रमुख प्रत्याशियों में एक पक्का, दूसरा आधा अधूरा व तीसरा बिल्कुल भी परिपक्व नहीं है। लेकिन उनका मत देशहित को ध्यान में रखकर ही गिरेगा।