आनंद कौशल, वरिष्ठ पत्रकार, मीडिया स्ट्रैटजिस्ट
(राष्ट्रीय अध्यक्ष- वेब जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया)
बिहार ब्रेकिंग
चार चरणों के चुनाव संपन्न हो चुके हैं और अभी तीन चरणों में बांकि की लोकसभा सीटों के लिए वोट डाले जाने हैं। जनहित से जुड़े मुद्दों से इतर देश के इस चुनाव में एक बार फिर से जाति, जमात और जज्बात से ज्यादा कुछ नहीं दिख रहा। सामान्य और मध्यम वर्ग से जुड़े मुद्दों को तो जैसे अब चुनावी मुद्दे माने ही नहीं जाते। देश की एक बड़ी आबादी के पास अभी भी दो वक्त की रोटी बमुश्किल नसीब होती है लेकिन ना तो उनको लेकर नीतियों पर बहस होती है और ना ही किसी चुनाव में किसी पार्टी द्वारा असल मुद्दे उठाये जाते रहे हैं। देश के अंदर राष्ट्रवाद का मुद्दा अहम है, होना भी चाहिए क्योंकि देश सबसे ऊपर है और देशप्रेम के बिना तो मनुष्य पशु के समान ही है। राष्ट्रवाद का मुद्दा कितना प्रभावी हो ये बहस का मुद्दा हो सकता है लेकिन क्या जिनकी महीने की आमदनी इतनी है कि घर का खर्च बड़ी मुश्किल से चलता है उनके लिए राष्ट्रवाद इतना अहम होगा ये बड़ा सवाल है। एक निश्चित आमदनी देकर भी क्या हम बहुसंख्य लोगों की हालत में सुधार ला सकेंगे और क्या ऐसे प्रावधानों के लिए पूंजी के जुगाड़ में फिर आम आदमी की जेबों पर ही इसका ऋणात्मक असर नहीं पड़ेगा। गरीबों और अमीरों के बीच की खाई इतनी गहरी होती जा रही है कि अमीर और अमीर होते जा रहे हैं और गरीब और गरीब । संयुक्त राष्ट्र निर्वहनीय विकास समाधान नेटवर्क (यूएनएसडीएसएन) द्वारा जारी विश्व प्रसन्नता रिपोर्ट 2019 के मुताबिक विश्व के सबसे खुशहाल देशों में भारत का स्थान 140वां है।
सबसे बड़ी बात यह है कि पाकिस्तान और बांग्लादेश के मुकाबले हमारे देश में लोग कम प्रसन्न हैं। इस सूची में फिनलैंड पहले स्थान पर है। 156 देशों के बीच लोगों की खुशियों को मापने के लिए छह महत्वपूर्ण निर्धारक कारकों को शामिल किया गया है जिसमें जीडीपी प्रति व्यक्ति आय, स्वस्थ जीवन प्रत्याशा, सामाजिक स्वतंत्रता, भ्रष्टाचार का अभाव, सामाजिक सहयोग एवं उदारता शामिल है। इस सूची में विश्व के प्रमुख विकसित देशों में जर्मनी 17वें, यूके 15वें, यूएसए 19वें औऱ फ्रांस 24वें स्थान पर है। यही नहीं आतंकवाद की समस्या से पीड़ित पाकिस्तान सड़सठवें, चीन तिरानवें, भूटान पंचानवें, नेपाल सौवें और श्रीलंका एक सौ तीसवें स्थान पर है। दरअसल पिछले ढाई दशकों में देश की विकास प्रक्रियाओं ने अपने साथ कई विषमताएं लायीं हैं जिसकी वज़ह से आज करोड़पति लगातार अरबपति बनते जा रहे हैं और हाशिये पर खड़ा व्यक्ति अपनी किस्मत पर आंसु बहा रहा है। चाहे देश में कांग्रेस की सरकार रही हो या भाजपा की किसी भी पार्टी ने बहुसंख्य लोगों के चेहरों पर खुशियां लाने की कोशिश नहीं की बल्कि जाति विशेष की कसौटी पर योजनाओं का ताना-बाना बुना और उसे वोट बैंक के नजरिये से देखना शुरू कर दिया।
देश की आज ये हालत है कि मध्यम और निम्न मध्यम वर्ग के सामने अपने भविष्य की चिंता विकराल होकर खड़ी है। उनके सामने जहां रोज़गार की चिंता है वहीं अपने बच्चों की बेहतर शिक्षा, आशियाने की चिंता और स्वस्थ जीवन देने की चिंता मुंह बाये खड़ी है। आप किसी भी पार्टियों के घोषणा पत्र को देखें तो पायेंगे कि उसमें ज़मीनी मुद्दे को लेकर बातें करने का साहस किसी में नहीं है। सभी पार्टियों को ये डर है कि अगर वो ज़मीनी मुद्दों पर ज़ोर डालेंगे तो सच्चाई परत-दर-परत खुलने लगेगी। आरक्षण की आग वैसे ही सुलग रही है, अभी दलितों-पिछड़ों को आरक्षण मिल रहा है कल किसी और को लेकिन हमारे तारणहार नेताओं को ये पता नहीं चल पा रहा है कि देश की समस्याओं के पीछे की वज़हें क्या हैं, असल में मुद्दों से हो रहे भटकाव ने ही हमें इस हाल में लाकर छोड़ दिया है। हम पाकिस्तान के अंदर दहशतगर्दी की बातें करके अपनी समस्याओं से मुंह मोड़ ले रहे हैं जबकि हमारे यहां आंतरिक अतिवाद की जड़ें इतनी गहरी हो चुकी हैं कि इससे निकलने का साहस किसी में नहीं है। अब वो वक्त आ गया है कि अपने जनप्रतिनिधि से काम का हिसाब लें और संसद में राईट टू रिकॉल को लेकर सख्त कानून बने, क्योंकि हम आज अगर मुद्दों से भटकते रहे तो हमारी आने वाली पीढ़ी को हम सूडान जैसा देश छोड़ कर जायेंगे और अगर आज आप काम के आधार पर नेता चुनने लगे तो भारत अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन को पीछे छोड़ सकेगा । कोई सरकार बनाये, कांग्रेस या फिर भाजपा लेकिन इस बार हमारी अगली सरकार की नीतियों की यूएसपी में बढ़ते प्रति व्यक्ति आय की जगह प्रति व्यक्ति खुशहाली की बात हो और इनको लेकर स्पष्ट और निर्भीक नजरिया हो क्योंकि व्यक्ति स्वस्थ और प्रसन्न है तभी समाज बनेगा और समाज मजबूत है तभी देश सशक्त और संबल बन सकता है। पिछले कई सालों में आरक्षण और विशेष प्रावधानों का फायदा देश की बड़ी आबादी को कितना मिला अब इसपर सवाल उठने लाजिमी हैं, साथ ही हमारी नीतियों में एक आम आदमी को क्या मिलेगा ये मुद्दा ही अहम हो।