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मैथिली भाषा के विकास में मैथिली फिल्मों का बहुत बड़ा योगदान रहा है। ये फिल्में मैथिल समाज में फैली हुई परंपरागत रुढ़िवादी रीति-रिवाज को दूर करने में सहायक तो साबित हुयी ही हैं, साथ ही मिथिला-मैथिली के प्रति प्रेम भाव जगाने में भी पीछे नहीं रही हैं। मैथिली भाषा में वैसे तो फिल्मों का निर्माण काफी सीमित दायरे तक हुआ है। मिथिलांचल की लोकभाषा मैथिली को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिए निर्माता बंधु विष्णु पाठक, रजनीकांत पाठक ने मैथिली फिल्म ‘लव यू दुल्हिन’ का निर्माण किया जिसका प्रदर्शन मई में होने की संभावना है। इस फ़िल्म में स्थानीय कलाकारों के साथ ही नामचीन कलाकारों को भी मौका दिया गया है। फिल्म बिहार की कुसहा त्रासदी पर आधारित है। आइये हम आपको बताते हैं मैथिली फिल्मों का इतिहास…
वैसे तो मैथिली भाषा में बहुत सारी फिल्मो का प्रदर्शन हो चुका है, फिर भी हम कुछ ऐसी महत्वपूर्ण मैथिली फिल्मो की चर्चा कर रहे हैं जो मिथिला के जनमानस में सदा ही अविस्मरणीय रहीं हैं या जिन्होंने कुछ ‘स्पार्क’ क्रिएट किया है। यह फिल्म मैथिली साहित्य के बड़े कथाकार हरिमोहन झा की पुस्तक ‘कन्यादान’ पर आधारित है। फिल्म के निर्माता निर्देशक फनी मजुमदार थे एवं कलाकार तरुण बोस (नायक), चाँद उस्मानी, पद्द्मा चटर्जी, टूनटून, दुलारी दाई एवं ब्रज किशोर सिंह। मैथिली के प्रसिद्ध साहित्यकार एवं कवि चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’ भी एक महत्वपूर्ण भूमिका में दिखाई दिए थे। यह फिल्म 1972 ई० में प्रदर्शित हुई। मैथिली सिनेमा के इतिहास में प्रदर्शित होने वाली पहली रंगीन फिल्म ‘जय बाबा बैद्यनाथ’ थी। विश्वजीत सोमा सालकर, विपिन गुप्ता, बकुल, त्रिलोचन झा एवं बकुल अभिनीत इसके कलाकार थे। पहले इस फिल्म का नाम ‘मधुश्रावणी’ रखा गया था लेकिन तत्कालीन परिवेश में मैथिली भाषा के अलावा हिंदी भाषा का प्रयोग करना भी आवश्यक समझा गया। बकुल अभिनीत इस फिल्म के निर्देशक थे। दरभंगा निवासी प्रहलाद शर्मा इस फिल्म के निर्माता- निर्देशक एवं गीतकार थे। इस फिल्म के माध्यम से बाबा बैद्यनाथ की महिमा को दर्शाया गया है। इस फिल्म को 1973 ई० में प्रदर्शित किया गया।
सिनेमा के क्षेत्र में मैथिली भाषा ने ‘ममता गाबय गीत‘ के माध्यम से प्रवेश किया। यह मैथिली भाषा का पहला चलचित्र है। प्यारे लाल सहाय, कमलनाथ सिंह ठाकुर, त्रिदीप कुमार एवं अजरा इस फिल्म के मुख्य कलाकार थे। 1962 ई० में इस फिल्म का मुहूर्त रखा गया, लेकिन सिनेमा घरों के पर्दे तक आने में इसे 19 साल लग गए। इस फिल्म का नाम पहले ‘नैहर मोर भेल सासुर’ रखा गया था। जिसे किसी कारणवश बाद में बदलकर ‘ममता गाबय गीत’ रख दिया गया। सिनेमा निर्माताओ के बीच मतभेद हो जाने कारण इस फिल्म का निर्माण बीच में ही बंद कर दिया गया था। अंततः गीतकार रवीन्द्र नाथ ठाकुर के द्वारा निर्माताओं एवं भागीदारों के बीच सुलह वार्ता कराया गया और 19 वर्षों के बाद इस फिल्म का प्रदर्शन सिनेमा घरों में 1981 ई० में हुआ। सर्व प्रथम ‘ममता गाबय गीत’ के निर्माता महंत मदन मोहन दास और केदार नाथ चौधरी थे। लेकिन बाद में उदय भानु सिंह और निर्देशक सी परमानंद इसके निर्माता हुए।
दिलचस्प बात ये है कि ये वही सी परमानंद थे जिन्होंने राज कपूर की क्लासिक फिल्म ‘तीसरी कसम’ में एक चाय की दूकान में मैथिली में एक डायलौग बोला था।मिथिला निवासी मुरलीधर मैथिली फिल्म ‘सस्ता जिनगी महग सेनुर’ के निर्देशक थे। बाद में मणि कान्त मिश्र इस फिल्म के निर्देशक बने। इस फिल्म के निर्माता बाल कृष्ण झा हैं जो दरभंगा के ही रहने वाले हैं। इस फिल्म के मुख्य कलाकार ललितेश झा, रीना और रूबी अरुण थे। दहेज प्रथा किस तरह समाज को खोखला कर रही है इसे फिल्म के माध्यम से दिखाया गया था। सन 2000 ई० में यह फिल्म प्रदर्शित हुई। इस फिल्म की पूरी शुटिंग भी मिथिला में ही हुई। मुखिया जी में मिथिलांचल की सामाजिक व्यवस्था पर हास्य एवं कटाक्ष करते हुए दर्शाया गया। यह मैथिली सिनेमा जगत की प्रथम डिजिटल फिल्म है। इसका सर्वप्रथम प्रदर्शन 2011 ई० में हुआ। रुपेश कुमार झा इस फिल्म के निर्माता हैं। जबकि विकास कुमार झा के निर्देशन में इस फिल्म का निर्माण हुआ है। सुभाषचन्द्र मिश्र, रौशनी झा, विक्की चौधरी, राम सेवक ठाकुर और ललन झा आदि इस फिल्म के मुख्य कलाकार हैं। इस फिल्म के माध्यम से हास्य व्यंग्य के साथ समाज में फैली हुई कुरीति, भ्रष्टाचार, प्रौढ़ शिक्षा, साफ़-सफाई, स्वास्थ्य, प्रतियोगी भावना, ऐतिहासिक दृष्टिकोण, औद्योगिकरण, सामाजिक विकास एवं अन्य भावनात्मक संदेश दिया गया है।
नयी मैथिलि फ़िल्मों से बदलाव की उम्मीद
नयी फिल्मों की अगर हम बात करें तो सिनेमेटोग्राफी के क्षेत्र में जबरदस्त बदलाव दिख रहा है। हाल की कुछ फिल्मे जैसे ‘ललका पाग’ और ‘मिथिला मखान’ पुरानी घिसी-पिटी हुयी पटकथा से हटकर प्रयोगात्मक मोड में चल रही है। पर अभी भी मैथिलि फिल्मो को मैथिली क्षेत्र के डिस्ट्रीब्यूटर हाथ लगाने से डर रहें है जिस कारण से फिल्में दिल्ली, मुंबई में रिलीज़ होकर ही रह जाती है।