बिहार ब्रेकिंग-सुमित कुमार-बेगूसराय
लोकसभा चुनाव प्रचार अब अभियान के तहत कन्हैया कुमार ने गुरुवार को बेगूसराय के मैदा बाभनगामा, फुलकारी, कारीचक बाभनगामा, लक्ष्मीपुर सरौजा, जगदर, बरैपुरा, डीहपर, मुज़फ़्फ़रा बाज़ार, भावानंदपुर पंचायत आदि में आयोजित रोड शो में जनता के सामने अपनी बात रखी। उन्होंने बेगूसराय के लोगों से अपने शहर की मिट्टी के बेटे पर भरोसा जताने की अपील करते हुए कहा कि आपका बेटा आपको इस बात की गारंटी देता है कि आपके शहर के विकास के लिए जो सांसद निधि मिलेगी उसका एक-एक पैसा यहां के विकास पर खर्च होगा और एक भी पैसा लौटाया नहीं जाएगा। उन्होंने कहा कि आज जब गरीब घरों के बच्चे भात-भात कहते हुए दुनिया छोड़ रहे हैं तब सांसद राशि का खर्च नहीं होना प्रतिनिधियों की जन विरोधी सोच को सामने लाता है।
कन्हैया ने कहा कि नए दौर की नई राजनीति में जितना ध्यान भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ फेंकने की जरूरत है उतना ही ध्यान देश को बाँटने वाली उस सांप्रदायिक सोच पर भी देने की जरूरत है जिसके कारण अल्पसंख्यक, दलित आदि खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। देश में ऐसा माहौल बना दिया गया है जिसमें सरकार की आलोचना को देश की आलोचना साबित करके हिंसा का प्रदर्शन करने वाले लोग खुद को सबसे ताकतवर और सुरक्षित समझने लगे हैं। हमें यह बात समझने की जरूरत है कि न तो देश का इतिहास 2014 से शुरू हुआ है और न ही सरकार बदलने के बाद इसका भविष्य अंधकारमय हो जाएगा। सरकारें आती-जाती रहती हैं लेकिन देश हमेशा बना रहता है। जिस देश की सभ्यता-संस्कृति हजारों साल पुरानी है वहां किसी एक नेता को देश बता देना लोकतंत्र के लिए खतरनाक है।
कन्हैया ने कहा कि जो लोग मुझ पर हमले कर रहे हैं वे नहीं जानते कि इससे उनकी बौखलाहट ही सामने आ रही है। हमले वही करते हैं जो लोकतंत्र और संवाद में यकीन नहीं करते। शिक्षा व्यक्ति को दूसरों की बात सुनने-समझने की समझदारी देती है, लेकिन यह बात उन लोगों को कभी समझ में नहीं आएगी जो शिक्षा के बजट में कटौती करके धन्नासेठों को कर्जमाफी की सौगात देने को ही असली राजनीति और अर्थनीति समझते हैं। जिस देश में लाखों सरकारी पद खाली पड़ें हों, वहां युवाओं के असंतोष को विपक्षियों का झूठ बताने वाली मोदी सरकार का सच सबके सामने आ चुका है। पिछले साल एक करोड़ 10 लाख नौकरियाँ चली गईं और यही वजह है कि लाल किले से नोटबंदी की उपलब्धियाँ गिनाने वाले प्रधानमंत्री अब चुनावी सभाओं में नोटबंदी का नाम लेने से भी बचते हैं।