आनंद कौशल, प्रधान संपादक सह अध्यक्ष, डब्ल्यूजेएआई की कलम से
बिहार ब्रेकिंग
पत्रकारिता में ई-कम्यूनिकेशन का दौर शुरू हो चुका है। अब वेबसाइट, ई-मेल, यूट्यूब, सोशल साइट, ट्विटर, ब्लॉग जैसे ई-कम्युनिकेशन पर चर्चा अधिक होती है। नई पीढ़ी इन चीजों को तेजी से अपना रही है। ई-जर्नलिज्म को अब हम नजरअंदाज नहीं कर सकते। समय के साथ इसका महत्व बढ़ता जा रहा है। आज की पत्रकारिता में बहुत सारे बदलाव आ चुके हैं। आज डिजीटल का जोर है। आने वाले दिनों में हम ई-जर्नलिज्म को अपनाएंगे। लोग इंटरनेट और मोबाइल पर कंटेंट को और ज्यादा से ज्यादा संख्या में पढ़ेंगे। सोशल साइट का प्रयोग अधिक बढ़ेगा। वर्तमान में 2.7 बिलियन वेबपेज रोजाना सर्च हो रहे हैं। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में फर्क है। प्रिंट वाले जो लिखते हैं वे बहुत सोच-समझकर अपनी बात कहते हैं, लेकिन जो बोलते हैं जरूरी नहीं कि वह पहले उस पर सोचते हैं। आज पत्रकारिता में विश्लेषण करने की क्षमता कम होती जा रही है। आम जनता का स्वभाव बन गया कि वह टीवी चैनल को देखती है और साथ में उसे कोसती भी है क्या इसे हम टीवी चैनलों की विश्वसनीयता पर संकट कहें? टीवी चैनलों के आने के बाद जो कुछ गलत हो रहा था उसे लोगों के बीच में लाने का काम शुरू हुआ। जर्नलिज्म में कमिटमेंट समाप्त होता जा रहा है। अखबारों में संपादकों की पोस्ट खत्म हो गई है, अब मैनेजर और प्रोपराइटर का जमाना है। पत्रकारिता में विश्वसनीयता आज सबसे बड़ी चुनौती है। लोकतंत्र में मीडिया अथवा प्रेस एक मजबूत स्तंभ है। पत्रकारिता टीवी की हो या प्रिंट की या फिर आज के दौर की न्यू मीडिया लेकिन लिखे गए शब्दों की ताकत को समझा जा सकता है। भूमंडलीकरण और उदारवादी अर्थव्यवस्था का मौजूदा दौर जबसे आरंभ हुआ है तब से हमारी पत्रकारिता के चाल, चरित्र और चेहरे में भी काफी बदलाव आया है। आज देश में 121 करोड़ मोबाइल फोन हैं जबकि 65 करोड़ के करीब स्मार्टफोन्स हैं। यह बदलते वक्त की पत्रकारिता की ताकत है कि रोज़ाना टीवी और प्रिंट से पहले करोड़ों लोग मोबाइल फोन पर ही सभी ख़बरों को पढ़ लेते हैं।
आज के दौर में युवाओं को इंटरनेट और सोशल मीडिया से बहुत सारी जानकारी मिल जाती है। ऐसे में प्रिंट मीडिया के सामने एक चुनौती रहती है कि सुबह वह पाठकों को नया क्या दे। दरअसल नए दौर की पत्रकारिता पर बाजारवाद हावी है और पत्रकारिता चुनौतीपूर्ण हो गई है। पत्रकारिता में स्वामित्व बदला है, जिनका सरोकार गांव, गरीब, वंचित, हमारी लोक संस्कृति, मनुष्य, पाठक, दर्शक या चिंतक नहीं है, बल्कि ग्राहक व विज्ञापनदाता से है। समाचार पत्र आज विज्ञापन व सर्कुलेशन पर निर्भर है, इसलिए मालिक व संपादक उस पर ज्यादा ध्यान देने लगे हैं। खबरों पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है, क्योंकि समाचार पत्रों में कार्यरत कर्मचारियों का वेतन विज्ञापन व सर्कुलेशन से ही आता है। वहीं, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से लोगों तक खबरें पहुंचाना आसान तो है लेकिन पाठक या दर्शक अब फीचर की जगह छोटी-छोटी खबरें पढ़ना या देखना पंसद करते हैं। जानकारी के मुताबिक इंटरनेट की पहली पत्रिका न्यूजीलैंड से प्रकाशित भारत दर्शन रही और इसका वेब संस्करण 1997 में उपलब्ध कराया गया । विश्व का यह पहला वेब पर हिंदी प्रकाशन था, दूसरी वेब कंटेट 1999 में अमेरिका से प्रकाशित हुई इसका नाम बोलोजी था । राजेंद्र कृष्ण इसका प्रकाशन करते थे, वहीं पूर्णिमा जी ने 2000 में अभिव्यक्ति का प्रकाशन शारजाह से किया। कुल मिलाकर तीनों बेव कंटेंट हमारे देश से बाहर के थे। वेब पर पहला हिंदी प्रकाशन ‘भारत-दर्शन’ था व इसके बाद ही भारत से ‘दैनिक जागरण’ (1997)और भारत का पहला हिंदी पोर्टल ‘वेब दुनिया’ (1999) अस्तित्व में आया। आज देखते ही देखते न्यू मीडिया या कुल मिलाकर कहें तो वेब पत्रकारिता का बड़ा असरदार दौर शुरू हो गया है। हालांकि फेक न्यूज़, पेड न्यूज़, निगेटिव न्यूज़, पॉजिटिव न्यूज़, इन्फ्लुएंस्ड न्यूज़ जैसे विषयों पर भी गंभीरता से सोचने की जरूरत है क्योंकि हमारी विश्वसनीयता हमारे ही हाथों में है, चंद सिक्कों पर अगर हम अपना ज़मीर बेच दें तो पत्रकारिता एक मिशन ना होकर व्यवसाय ही हो जाएगी लेकिन व्यावसायिकता की इस अंधी दौड़ में अपने अस्तित्व की रक्षा के साथ ही जिंदा रहने के लिए रोटी का जुगाड़ भी जरूरी है। अर्थयुग में हमारी पत्रकारिता, निष्पक्षता और विश्वसनीयता के उस ऊच्च मूल्यों को हासिल करने की दिशा में चुनौतियों से गुजर रहा है लेकिन ये सच है कि हम आत्मचिंतन कर उस नेपथ्य को हासिल कर सकते हैं।