
बिहार ब्रेकिंग

भारत की आजादी के लिए हजारों वीरों ने अपनी जान गंवाई यह तो सभी जानते हैं। आजादी के लड़ाई के कुछ वीरों को दुनिया आज भी जानती है और सलाम करती है तो कुछ वीर योद्धा गुमनाम हो गये। वैसे तो आजादी के लड़ाई में बिहार का भी अपना एक अहम योगदान रहा है और तो और गांधीजी ने भी अपनी लड़ाई बिहार से शुरू की थी और अंजाम तक पहुंचे थे। बिहार हमेशा से ही क्रांतिकारियों की धरती रही है। आज हम आपको ऐसा ही कुछ वाकया बताने जा रहे हैं। आजादी के पूर्व की बात है, बहुत कम लोगों को पता होगा या यूँ कहें कि शायद ही चंद लोगों को पता होगा कि बिहार के बेगूसराय जिले के एक छोटे से गांव में आजादी के वीर योद्धा और भारत माँ के वीर सपूत भगत सिंह अंग्रेजों से लड़ाई के दौरान कुछ दिनों के लिए भूमिगत हो कर रहे थे। बात है लगभग वर्ष 1925 की जब भगत सिंह पर अंग्रेजों ने सूट वारंट जारी किया था तब भगत सिंह आजादी की लड़ाई को जारी रखने के लिए और अपनी जान बचाने के लिए अंग्रेजों से छिपते छिपाते हुए पहुंचे थे बेगूसराय जिले के बछवाड़ा प्रखंड मुख्यालय स्थित नारेपुर जट्टाबाबा के ठाकुरवाड़ी में। उस समय ठाकुरवाड़ी के महंथ जट्टाबाबा भी देश की आजादी के लिए अपना योगदान दे रहे थे और उन्होंने भगत सिंह को मदद करने का ठान लिया था। भगत सिंह जब उनके पास पहुंचे थे तो पास में रेलवे स्टेशन होने के कारण उन्हें भगत सिंह को अपने पास रखना मुनासिब नहीं लगा और उन्होंने उन्हें पहुंचा दिया बेगूसराय के बछवाड़ा प्रखंड और समस्तीपुर के विद्यापति प्रखंड के बॉर्डर इलाका (बेगूसराय और समस्तीपुर का भी बॉर्डर इलाका) एक छोटे से गाँव में जिसका नाम है गोपालपुर।
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गोपालपुर में जट्टा बाबा के एक मित्र थे रामखेलावन भगत जिनके घर में भगत सिंह करीब चालीस दिन तक वेश बदल कर रहे थे। गोपालपुर के जिस घर में भगत सिंह रहे थे उस घर का जीर्ण शीर्ण अवस्था में खंडहर अभी भी मौजूद है। हालांकि उस घर का अधिकतम भाग तो टूट गया लेकिन रामखेलावन भगत के वंशजों ने अभी भी उस धरोहर को संजो कर रखा है। बछवाड़ा के साहित्यकार उमेश कुंवर कवि ने बताया कि स्वतंत्रता संग्राम में बछवाड़ा का अमूल्य योगदान रहा है और यहां की मिट्टी से कई क्रांतिकरियों ने स्वतंत्रता संग्राम में भाग भी लिया था। उन्होंने बताया कि भगत सिंह के यहां से जाने के बाद काकोरी कांड को अंजाम दिया गया था। वहीं रामखेलावन भगत के पुत्र की परपौत्री काजल चौरसिया हंसते हुए बताती है कि हमारी परदादी और परदादा ने बताया था कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अक्सर अंग्रेज सिपाही भी छापेमारी करने आते रहते थे जिसमे एक बार स्वतंत्रता के सिपाही खाने की तैयारी कर रहे थे और उन्होंने मक्के की रोटी और घी रखी थी खाने के लिए तभी अंग्रेज सैनिक आ गये और सरे क्रांतिकरी भाग कर छिप गये थे तब अंग्रेजों ने वो सारा मक्के का रोटी और घी खा लिया था और खा कर बहुत ही अचंभित भी हुए थे कि आखिर ये कौन सा भोजन है जो कि इतना स्वादिष्ट है।