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सवर्णों को आर्थिक आधार पर दस प्रतिशत आरक्षण देने के मामले में शिवानंद तिवारी ने मोदी सरकार पर निशाना साधा। शिवानंद तिवारी ने पूर्व के आरक्षण व्यवस्था के साथ साथ सवर्ण आरक्षण पर निशाना साधते हुए कहा कि आरक्षण की दोनों ही व्यवस्था गरीबों के हक में नहीं है। उन्होंने कहा कि आर्थिक आधार पर आरक्षण के लिए मोदी सरकार ने जो नियम बनाए गए हैं उसके आधार पर भाजपा की नज़रों में समाज का कौन तबक़ा मायने रखता है यह बिलकुल स्पष्ट हो जाता है। जैसे इस आरक्षण व्यवस्था में सामान्य वर्ग यानी स्वर्ण जाति के उन परिवारों को आर्थिक दृष्टिकोण से पिछड़ा माना गया है जिनकी मासिक आमदनी आठ लाख रुपए से कम होगी। दूसरी ओर पिछड़ी जाति को मिलने वाली आरक्षण व्यवस्था में जिनके परिवार की आमदनी आठ लाख रुपए या अधिक होगी उनको ‘मलाईदार’ मानकर आरक्षण के लाभ से वंचित कर दिया जाएगा।
शिक्षा के मामले में भी दोनों प्रकार की आरक्षण व्यवस्थाओं में गंभीर भेद-भाव किया गया है। पिछड़े, दलित या आदिवासी समाज के छात्रों के लिए निजी उच्च शिक्षण संस्थानों के नामांकन में आरक्षण की व्यवस्था लागू नहीं है। जबकि आर्थिक आधार पर आरक्षण के जो नियम बनाए गए हैं उसके मुताबिक़ निजी उच्च शिक्षण संस्थाओं में भी सवर्ण जाति के ग़रीब छात्रों के लिए नामांकन में आरक्षण प्राप्त होगा। आश्चर्य है कि आर्थिक आधार पर दिए जाने वाले आरक्षण के जो नियम बनाए गए हैं उसमें पलड़ा सवर्ण ग़रीबों के पक्ष में नहीं बल्कि ‘मलाईदारों’ के पक्ष में ही झुका हुआ दिखाई दे रहा है। सवर्णों में कितने ऐसे हैं जिनकी मासिक कमाई पैंसठ हजार रूपए होगी, या पाँच एकड़ के आसपास जोत वाले कितने स्वर्ण होंगे। यानि आर्थिक दृष्टिकोण से ग़रीब लोगों को आरक्षण देने के नाम पर सवर्ण समाज के ‘मलाईदार’ लोगों के ही पक्ष में ही इसके नियम बनाए गए हैं।